जातियों का आरंभ
परमेश्वर सभी कार्य अपनी भव्य योजना के अनुसार करता है।
प्रस्तावना
"फिर उन्होंने कहा, आओ, हम एक नगर और एक गुम्मट बना लें, जिसकी चोटी आकाश से बातें करे, इस प्रकार से हम अपना नाम करें ऐसा न हो कि हम को सारी पृथ्वी पर फैलना पड़े।"
– उत्पत्ति ११:४
"इस कारण उस नगर को नाम बाबुल पड़ा; क्योंकि सारी पृथ्वी की भाषा में जो गड़बड़ी है, सो यहोवा ने वहीं डाली, और वहीं से यहोवा ने मनुष्यों को सारी पृथ्वी के ऊपर फैला दिया।"
– उत्पत्ति ११:९
"नूह के वंशजों की गिनती बहुत बढ़ गई, परन्तु वे एक ही दल बने रहे। वे परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार सारी पृथ्वी पर नहीं फैले। इसके विपरीत, उन्होंने एक नगर बसा लिया। फिर उन्होंने एक मीनार बनाई जो आकाश को छूती थी। परमेश्वर इससे प्रसन्न नहीं था। इसलिए परमेश्वर ने उनकी भाषा में बड़ी गड़बड़ी डाली। उसी घड़ी वहाँ लोगों के लगभग सत्तर समूह बन गए जो आपस में बातचीत नहीं कर सके। फिर परमेश्वर ने इन समूहों को पृथ्वी पर तितर-बितर कर दिया और यह आरंभ था - हमारे संसार की भाषाओँ और जातियों का।"
– “आशा” अध्याय ४
ध्यान से देखें और विचार करें
स्मरण करें, पिछले पाठ में हमने पढ़ा था कि जब नूह और उसका परिवार जहाज से बाहर निकला, परमेश्वर ने उन्हें आशीषित किया और उनसे कहा कि वे पृथ्वी पर भर जाएँ। (उत्पत्ति 9:1,7). परंतु पृथ्वी पर भर जाने के बजाय, नूह का परिवार एक स्थान पर इकट्ठा हो गया और उन्होंने एक नगर बसा लिया। और फिर उन्होंने एक मीनार बनाई जो आकाश को छूती थी| (उत्पत्ति 11:4). उनका प्रयोजन था, अपना नाम करना और पृथ्वी पर सर्वत्र फैल जाने से बचना।
उत्पत्ति 11:5-9 परमेश्वर ने उनकी भाषा में बड़ी गड़बड़ी डाली ताकि वे लोग एक दूसरे की बातें न समझ सकें। बाइबल के विद्वान जल-प्रलय और बाबेल की मीनार के निर्माण के बीच की सटीक समय-अवधि पर एकमत नहीं हैं। उत्पत्ति 10, में दर्ज़ किए गए विवरण से हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि बाबेल की मीनार के समय वहाँ ७० पारिवारिक इकाइयाँ थीं।1 इसलिए, जिस समय परमेश्वर ने उनकी भाषा में गड़बड़ी डाली, बाइबल के विद्वानों का अनुमान है कि वहाँ लगभग ७० विभिन्न भाषाएँ बोली जा रही थीं। अवश्य ही वह एक पूर्ण अराजकता का समय रहा होगा!
मीनार का कार्य अचानक रुक गया और लोग तितर-बितर होकर पृथ्वी पर फैल गए (उत्पत्ति 11:9)|
यह भी स्मरण करें कि पिछले पाठ में हमने पृथ्वी पर भर जाने की परमेश्वर की आज्ञा की तुलना लोगों के पृथ्वी पर फैल जाने के डर से की थी (उत्पत्ति 9:1) परमेश्वर की अवज्ञा करने के फलस्वरूप, वह बात जिससे वे लोग उत्पत्ति 11:4 में (फैल जाने से) बचना चाह रहे थे, वही बात उत्पत्ति 11:9 (वे तितर-बितर होकर फैल गए)।
अब, यह सबकुछ एक बहुत बड़ी असमंजस की स्थिति उत्पन्न करने वाली गड़बड़ी प्रतीत हो सकती है, किंतु जैसा हम परमेश्वर की कहानी में पहले भी कई बार देख चुके हैं, परमेश्वर के पास एक योजना है! और उस योजना में जो एक कदम पीछे हटता हुआ नज़र आता है, यदि हम परमेश्वर के दृष्टिकोण से देखें तो, प्रायः वह वास्तव में एक कदम आगे बढ़ता हुआ होता है।
परमेश्वर द्वारा भाषाओं में गड़बड़ी डालने से पहले समस्त पृथ्वी के लोग एक ही भाषा बोलते थे और एक ही शब्द समूह का प्रयोग करते थे (उत्पत्ति 11:1). । विभिन्न भाषाओं का आरंभ और लोगों का तितर-बितर होना जातियों के आरंभ को चिन्हित करता है, जिस रूप में आज हम उन्हें जानते हैं। वैसे, बाइबल में ‘जाति’ शब्द का तात्पर्य एक भौगोलिक देश से नहीं है, बल्कि एक ऐसा समूह है जो भाषा, संस्कृति, जनजातीय संबद्धता आदि के आधार पर अन्य लोगों के समूह से भिन्न होता है।2 आज संसार में आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त १९५ देश हैं, किन्तु अलग-अलग लोक-समूहों की ९००० से १३००० जातियाँ हैं।3 और यदि हम पन्ने पलट कर सीधा बाइबल के अंत भाग में जाएँ, तो देखेंगे कि परमेश्वर की कहानी का समापन और पराकाष्ठा हमें एक स्वर्गीय दृश्य में पहुँचा देती है (प्रकाशितवाक्य 7:9)जहाँ हर एक जाति के लोग परमेश्वर की आराधना करने के लिए और उसके साथ आनंद मनाने के लिए एकत्र हुए हैं!
आज जो कहानी हमने पढ़ी, उसके पहले जातियाँ अस्तित्व में ही नहीं थीं - किंतु एक दिन पृथ्वी की हर एक जाति के लोग परमेश्वर की आराधना करने के लिए एकता में एकत्र होंगे! एकता! संसार यही तो चाहता है। ओलंपिक समारोह अपनी संपूर्ण भव्यता में भी इसका एक अंशमात्र ही दर्शा पाते हैं। संसार के "धर्म" प्रायः इसे बढ़ावा देते हैं। संयुक्त राष्ट्र इसके लिए कार्य करता है। लेकिन संसार इसे कभी भी हासिल नहीं कर पाया। केवल परमेश्वर ही है जो एक जटिल, पाप संक्रमित संसार की विविधता में एकता ला सकता है! और जब वह ऐसा करता है, तब यह प्रदर्शित करेगा कि वह कितना महान है!
पूछें और मनन करें
जो बात बाबेल के लोग बिल्कुल नहीं चाहते थे, वह थी: समस्त पृथ्वी पर फैल जाना। परन्तु अपने उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए, परमेश्वर को उनके जीवन को मौलिक रूप से पुनर्व्यवस्थित करना पड़ा। जैसा कि हमने देखा, परमेश्वर का परम उद्देश्य है उन सभी लोगों को आशीष देना जो उसका अनुसरण करते हैं, और महिमा और आदर पाना।
- परमेश्वर आपके जीवन में क्या पुनर्व्यवस्थित कर सकता है?
- क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसका अनुसरण करने के द्वारा उसके साथ सहयोग कर रहे हैं?
- या (उन लोगों के समान जिन्होंने आकाश तक पहुँचने के लिए एक मीनार का निर्माण किया था) क्या आप अपनी शर्तों पर आशीष प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हैं?
निर्णय लें और करें
जीवन में आपके मार्ग को पुनः निर्देशित करने के लिए परमेश्वर कभी-कभी कुछ नाटकीय मोड़ ला सकता है, परंतु अंततः वह कभी-भी आपकी इच्छा की अवहेलना कर, आपको उसकी योजना में सहयोग देने का चुनाव करने के लिए बाध्य नहीं करेगा। वह आपको एक छोटा-सा रोबोट नहीं बनाना चाहता है जो यांत्रिकी रूप से और बिना सोचे समझे उसकी योजना के अनुरूप ताल मिलाते हुए चले। न ही वह आपको एक सुपर ह्यूमन (अद्भुत शक्तियों वाला मनुष्य) बनाने का प्रयास कर रहा है जो अपने दम पर सदैव सही चुनाव ही करता है, वैसा तो उसने पहले ही बना दिया होता।
परमेश्वर के साथ जीवन एक नृत्य के समान है। परमेश्वर स्वयं को आप के माध्यम से व्यक्त करना चाहता है, आपके बगैर नहीं। जब आप उसके कदमों की अगुवाई के अनुसार चलते हैं, तब आप एक ऐसी सुंदरता से शैलीबद्ध (कोरियोग्राफ) किए गए जीवन का अनुभव करते हैं, जो दूसरे लोगों को यह देखने में सहायता करता है कि परमेश्वर कौन है। आज ही परमेश्वर से प्रार्थना करें कि वह आपको दिखाए कि आप उसकी अगुवाई में किस प्रकार चल रहे हैं। उसके बाद, परमेश्वर से विनती करें कि वह अपने हर कदम से आपको उसके साथ अंतरंग एकता में बढ़ने में आपकी सहायता करे।
अधिक अध्ययन के लिए पढ़ें
- John Morris, What Happened at the Tower of Babel? (© The Institute for Creation Research, 2006). (http://www.icr.org/article/what-happened-at-tower-babel/). Retrieved October 9, 2006.
- Rick Wade, The Sovereignty of God. (© Probe Ministries, 2004). (http://www.probe.org/site/c.fdKEIMNsEoG/b.4225033/k.5971/The_Sovereignty_of_God.htm). Retrieved October 10, 2006. This article explores the mystery of God’s sovereignty and man’s will.
Footnotes
1Henry M. Morris, The Biblical Basis for Modern Science, Part 4, Chapter 15– Babel and the World Population: Biblical Demography and Linguistics. (Baker Books, Grand Rapids, Michigan, 1984). (http://www.ldolphin.org/morris.html). Retrieved October 9, 2006.
2Claude Hickman, What Is a People Group? (http://www.thetravelingteam.org/stateworld/people-groups/what-people-group).
Retrieved October 8, 2006. “In the New Testament, the Greek word for “nations” is the word “ethne.” We get our word ethnicity from it. It means something like an ethnic group. The idea is much more specific than the political nation–states we think of such as Indonesia, Turkey, or Nigeria. An anthropologist would call this “ethne” a “People Group.” A people group is the largest group within which the gospel can spread without encountering barriers of understanding or acceptance due to culture, language, geography, etc.”
3Global Summary. (Joshua Project, A ministry of the U.S. Center for World Mission, PO Box 64080, Colorado Springs, CO 80962 USA ) (http://www.joshuaproject.net/index.php). People and Language (World Christian Database, Center for the Study of Global Christianity, Gordon-Conwell Theological Seminary) (http://www.worldchristiandatabase.org/wcd/about/people.asp). Retrieved May 6, 2014.