मूसा – परमेश्वर के काम आने के लिए कभी बहुत देर नहीं होती

जब उसे लगा कि वह अयोग्य हो गया है, तब ही वह पूरी तरह से योग्य बना।


प्रस्तावना

"मूसा अपने ससुर यित्रो नामक मिद्यान के याजक की भेड़-बकरियों को चराता था; और वह उन्हें जंगल की पश्‍चिमी ओर होरेब नामक परमेश्‍वर के पर्वत के पास ले गया। और परमेश्‍वर के दूत ने एक कटीली झाड़ी के बीच आग की लौ में उसको दर्शन दिया; और उसने दृष्‍टि उठाकर देखा कि झाड़ी जल रही है, पर भस्म नहीं होती। तब मूसा ने कहा, “मैं उधर जाकर इस बड़े आश्‍चर्य को देखूँगा कि वह झाड़ी क्यों नहीं जल जाती।” जब यहोवा ने देखा कि मूसा देखने को मुड़ा चला आता है, तब परमेश्‍वर ने झाड़ी के बीच से उसको पुकारा, “हे मूसा, हे मूसा!” मूसा ने कहा, “क्या आज्ञा।” उसने कहा, “इधर पास मत आ; और अपने पाँवों से जूतियों को उतार दे, क्योंकि जिस स्थान पर तू खड़ा है वह पवित्र भूमि है।” फिर उसने कहा, “मैं तेरे पिता का परमेश्‍वर, और अब्राहम का परमेश्‍वर, इसहाक का परमेश्‍वर, और याक़ूब का परमेश्‍वर हूँ।” तब मूसा ने जो परमेश्‍वर की ओर देखने से डरता था, अपना मुँह ढाँप लिया। फिर यहोवा ने कहा, “मैं ने अपनी प्रजा के लोग जो मिस्र में हैं, उनके दु:ख को निश्‍चय देखा है; और उनकी जो चिल्‍लाहट परिश्रम करानेवालों के कारण होती है उसको भी मैं ने सुना है, और उनकी पीड़ा पर मैं ने चित्त लगाया है; इसलिये अब मैं उतर आया हूँ कि उन्हें मिस्रियों के वश से छुड़ाऊँ, और उस देश से निकालकर एक अच्छे और बड़े देश में, जिसमें दूध और मधु की धाराएँ बहती हैं,...पहुँचाऊँ।"

– निर्गमन ३:१-८ 

"फ़िरौन से दंड पाने के डर से मूसा मरूस्थल को भाग गया और वहाँ वह चालीस वर्ष तक एक चरवाहे की तरह रहा। फिर एक दिन परमेश्वर ने एक झाड़ी के बीच आग की लौ में मूसा को दर्शन दिया। झाड़ी जल रही थी, पर भस्म नहीं होती थी। और परमेश्वर ने झाड़ी के बीच से मूसा से बात की। परमेश्वर ने मूसा को अपने लोगों के पास लौट जाने और उन्हें मिस्र से निकाल लाने को कहा। परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की कि वह उसके साथ बना रहेगा।"

– "आशा" अध्याय ६ 

ध्यान से देखें और विचार करें

अध्याय ६ के पहले पाठ में, हमने एक बहुत ही विशिष्ट दर्शन के बारे में जाना था जो परमेश्वर ने अब्राहम को दिया था। परमेश्वर ने अब्राहम से कहा था कि: 

  • उसके वंशज परदेशी होकर उस देश में रहेंगे जो उनका अपना नहीं था।
  • वे वहाँ दास बनकर रहेंगे और चार सौ वर्ष तक प्रताड़ित किए जाएँगे।

फिर, पाठ ३२ में हमने देखा कि कैसे परमेश्वर ने यूसुफ को एक माध्यम बनाकर उसके परिवार (अब्राहम के वंशज) को मिस्र (एक ऐसा देश जो उनका अपना न था) में बसने की अनुमति देकर उनके अपने देश में पड़े आकाल से बचाया। मिस्र में यूसुफ का परिवार गिनती में बढ़ता गया और अंततः उन्हें मिस्र के शासकों द्वारा दास बना लिया गया और प्रताड़ित किया गया। इसके दौरान, वे 'इब्री लोग' के रूप में पहचाने जाने लगे। एक समय ऐसा आया, जब मिस्र के शासक ने प्रत्येक इब्री परिवार के नवजात पुत्र को मार डालने का आदेश दिया। मगर, एक इब्री बालक को तब बचा लिया गया, जब उसकी माता ने उसे एक टोकरी में रखकर उस नदी में बहा दिया जो राजकुमारी के महल के पास से बहती थी। राजकुमारी ने बालक को देख लिया, उसने उसे अपने पुत्र के रूप में अपनाया और उसका नाम मूसा रखा।1 उसका पालन-पोषण मिस्र के एक राजकुमार के रूप में हुआ... परंतु वह जन्म से एक इब्री था, और वह यह बात कभी नहीं भूला। 

एक दिन जब मूसा लगभग ४० वर्ष का था, उसने देखा कि एक मिस्री जन एक इब्री जन को मार रहा है, इसलिए उसने उस मिस्री को मार डाला। अपने प्राण बचाने के लिए मूसा डर के मारे जंगल में भाग गया। वहाँ उसने एक चरवाहे की बेटी से विवाह किया और उसी स्थान पर अगले ४० वर्षों तक रहा।2 और इसी बिंदु पर हमारा आज का पाठ आरंभ होता है। अब्राहम के वंशजों को एक दूसरे देश में दास बना लिया गया है, ठीक वैसे ही जैसे परमेश्वर ने कहा था। और ८० वर्ष की आयु में मूसा का सामना, वाचा बांधने वाले 'अब्राहम, इसहाक और याकूब के परमेश्वर', के साथ होने वाला है। 

इसके बारे में सोचें, मिस्र का राजकुमार होने के रूप में मूसा को सब कुछ मिला था जो धन और शक्ति से प्राप्त हो सकता है फिर भी उसने अपने लोगों का दु:खों  को पहचाना  (निर्गमन 2:11). अपने प्रभाव से वह अपने लोगों की सहायता कर सकता था जैसा कि युसूफ ने किया था। परन्तु जब मूसा ने उस मिस्री जन को मार डाला, तब हर कोई उसके विरुद्ध हो गया, यहाँ तक कि उसके अपने लोग भी उसके विरुद्ध हो गए। यह मानकर कि उसने अपनी सारी सामर्थ्य गँवा दी है, मूसा जंगल में जाकर छिप गया।

कई लोग मूसा के जीवन को अपनी स्वयं की आत्मिक यात्रा के लिए एक रूपक के रूप में देखते हैं। अपने जीवन के पहले ४० वर्षों में मूसा को पूर्णत: संसार की रीतियों के अनुसार शिक्षा दी गई थी। परंतु जब उसने परमेश्वर से अलग होकर कार्यों को अपनी रीति से करने का प्रयास किया तो वह पूर्णतया विफल हो गया। जंगल में उसके समय के दौरान, परमेश्वर जो कुछ भी मूसा के भीतर बना रहा था (या उस में से बाहर निकाल रहा था), उनमें से कुछ बातें स्पष्ट झलकती है। जंगल में बिताए ४० वर्षों के उपरांत, ऐसा लगता है जैसे मूसा के भीतर धन, शक्ति और प्रसिद्धि पाने की कोई भी स्वार्थी महत्वाकांक्षा नहीं रही थी, यहाँ तक कि कुछ महत्वपूर्ण करने की आवश्यकता (जैसे अपने लोगों को बँधुआईसे छुड़ाना) का भाव भी नहीं रहा। उसे ऐसा कुछ भी पाने या करने की इच्छा ही नहीं थी जिसे उस दुनिया में महत्वपूर्ण समझा जाता था, जहाँ से वह आया था। जंगल में मूसा को उसकी पहले की दुनिया के रीतियों से छुड़ाया गया था।

जिस दिन मूसा को जलती हुई झाड़ी का अनुभव हुआ था, उस दिन भी संभवतः उसने अपने दिन का आरंभ इस मनोदशा से किया होगा कि वह अपना शेष जीवन इसी जंगल में बिताने वाला है.... गुमनामी में। उस स्थान में ४० वर्ष व्यतीत करने के बाद मूसा यही सोचता होगा कि उसके जीवन को जैसे ताक़ पर धर दिया गया है। उसे क्या पता था कि उसके जीवन के सबसे अच्छे दिन आरंभ होने वाले हैं! जलती हुई झाड़ी में, परमेश्वर ने मूसा को जैसे एक स्नातक समारोह दिया जो मिस्र के सबसे अच्छे विद्यालयों में होने वाले समारोहों से बहुत अलग था। एक तरह से, परमेश्वर कह रहा था कि मूसा अंततः वह सब करने के लिए तैयार हो गया है जिसे पूर्ण करने के लिए वह सर्वदा से सृजा गया था। मूसा वह सब अब मनुष्य की रीति के बजाय परमेश्वर की रीति से करने के लिए तैयार था। वह सदैव ही महान योग्यताओं वाला व्यक्ति रहा था, उनमें से कुछ योग्यताएँ स्वाभाविक थी, और कुछ उसने मिस्र देश में अपने पालन-पोषण के माध्यम से प्राप्त की थीं। परंतु अब मूसा परमेश्वर से अलग, अपने आप पर निर्भर होकर अपनी सामर्थ्य का प्रयोग करने के बजाय अपनी सामर्थ्य को परमेश्वर के अधीन करने के लिए तैयार था।

जैसे कि हम शीघ्र ही देखेंगे, मूसा इब्री लोगों को बँधुआई से छुड़ाता है और अगले ४० वर्षों तक उनकी अगुवाई करता है, और इस प्रकार अंततः मानव इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण हस्तियों में से एक बन जाता है।

पूछें और मनन करें

  • मूसा के लिए जंगल केवल एक स्थान से कहीं बढ़कर था; यह उसकी आत्मा में एक ऐसा स्थान था जहाँ वह उन बातों पर निर्भर नहीं हो सकता था (और उससे आवश्यकता भी नहीं थी) जो मिस्र में उसकी पहचान को परिभाषित करती थीं। जंगल में वह वास्तविक चुनौती ...और असफलता से भाग सकता था। बहुत ही अजीब तरह से, यह स्थान उसके लिए असहज और सहज, दोनों, एक साथ था। यदि परमेश्वर हस्तक्षेप नहीं करता तो हो सकता है वह वहीं फंसा रह जाता। क्या आप कभी ऐसे किसी स्थान पर रहे हैं? यदि हाँ, तो समझाइए।
  • लोगों की दुर्बलता उन्हें परमेश्वर पर निर्भर करने के लिए प्रायः बाध्य कर सकती है। परंतु उनकी सबलता उन्हें यह सोचने के लिए प्रेरित कर सकती है कि उन्हें परमेश्वर पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है। जब ऐसा होता है, तब हमारी सबसे बड़ी सबलता हमारे आत्मिक जीवन के लिए सबसे बड़ी बाधा बन सकती है। क्या आप अपने जीवन में ऐसे ही किसी सबलता के क्षेत्र के बारे में सोच सकते हैं, एक ऐसा क्षेत्र जहाँ आपको परमेश्वर पर निर्भर हुए बिना कार्य करना आसान लगता हो?
  • आप क्या सोचते हैं कि परमेश्वर ने आपको मूसा के जीवन से क्या सिखाया?

निर्णय लें और करें

यदि आप मूसा की कहानी से स्वयं को जोड़ पाते हैं, यदि आपको लगता है कि आपने वह बनने का अवसर खो दिया है जो परमेश्वर चाहता है कि आप बनें, यदि आपको लगता है कि आप को जैसे ताक़ पर धर दिया गया हैं, तो मूसा के जीवन से प्रोत्साहित हों। परमेश्वर ही वह एकमात्र जन है जो निर्धारित करता है कि कब हम उसकी बुलाहट के उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए तैयार हैं, और वही वह एकमात्र जन है जो उस उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए हमें तैयार करता है, कभी-कभी जंगल में ले जाने के माध्यम से भी।

परमेश्वर आपका उपयोग करे, इसके लिए कभी भी बहुत देर नहीं होती! (अर्थात् आप किसी भी आयु में परमेश्वर के काम आ सकते हैं।) जब परमेश्वर कहे कि चलने का समय आ गया है, तब तैयार रहें!

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Footnotes

1Exodus 2:1-10
2Exodus 2:11-23

Scripture quotations taken from the NASB