महानतम आश्चर्यकर्म
पाप की क्षमा - सभी आश्चर्यकर्मों में से सर्वश्रेष्ठ आश्चर्यकर्म।
प्रस्तावना
"यीशु ने उनका विश्वास देखकर उस लकवे के रोगी से कहा, "हे पुत्र, तेरे पाप क्षमा हुए।" तब कई शास्त्री जो वहाँ बैठे थे, अपने-अपने मन में विचार करने लगे, "यह मनुष्य क्यों ऐसा कहता है? यह तो परमेश्वर की निन्दा करता है! परमेश्वर को छोड़ और कौन पाप क्षमा कर सकता है?" यीशु ने तुरन्त अपनी आत्मा में जान लिया कि वे अपने-अपने मन में ऐसा विचार कर रहे हैं, और उनसे कहा, "तुम अपने-अपने मन में यह विचार क्यों कर रहे हो? सहज क्या है? क्या लकवे के रोगी से यह कहना कि तेरे पाप क्षमा हुए, या यह कहना कि उठ अपनी खाट उठा कर चल फिर? परन्तु जिस से तुम जान लो कि मनुष्य के पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का भी अधिकार है।" उसने उस लकवे के रोगी से कहा, "मैं तुझ से कहता हूँ, उठ, अपनी खाट उठाकर अपने घर चला जा।"
– मरकुस २:५-११
"यीशु ने जो कुछ भी किया उनमें से सबसे अधिक जिस बात से धार्मिक अगुए नाराज़ हुए वह यह थी जब उसने लोगों को कहा कि उनके पाप क्षमा हुए। क्योंकि केवल परमेश्वर को ही पाप क्षमा करने का अधिकार है।
वह काम करके जो केवल परमेश्वर ही कर सकता है, यीशु वास्तव में परमेश्वर होने का दावा कर रहा था, और ऐसा करना इब्री व्यवस्था के अनुसार मृत्युदण्ड के योग्य था।"
– "आशा" अध्याय ९
ध्यान दें और विचार करें
यदि आश्चर्यकर्मों के विषय में बात करें तो यीशु मसीह द्वारा किए गए आश्चर्यकर्मों के प्रलेखन की अपनी एक अलग ही श्रेणी है। हालांकि इतिहास में ऐसे अन्य लोग भी हैं जिन्होंने चमत्कार किए हैं (या ऐसा कहा है कि उन्होंने चमत्कार किए हैं)। इन लोगों में न केवल बाइबल के अन्य पात्र शामिल हैं, बल्कि अन्य धर्मों के संस्थापक भी शामिल हैं।
परंतु एक आश्चर्यकर्म ऐसा है जिसके बारे में कोई भी अन्य व्यक्ति या किसी भी प्रमुख विश्व धर्म का कोई भी संस्थापक दावा नहीं कर सकता है, वह है: पापों की क्षमा। यीशु ने वास्तव में लोगों से कहा कि उनके पाप क्षमा हुए (मत्ती 9:2, मरकुस 2:5, लूका 5:20, लूका 7:47)। यीशु जिस क्षमादान के लिए बुलाता था उसका आधार वही है जो यीशु अंततः अपनी मृत्यु और अद्भुत पुनरुत्थान के द्वारा पूर्ण करेगा।
अधिकांश इब्रानी धार्मिक अगुए नाराज़ थे कि यीशु लोगों से कहता था कि "तेरे पाप क्षमा हुए" क्योंकि केवल परमेश्वर ही पाप क्षमा कर सकता है। इस बात का दावा करके कि उसके पास पापों को क्षमा करने का अधिकार है यीशु वास्तव में परमेश्वर होने का दावा कर रहा था। वह यह बात जानता था - और वे लोग भी जानते थे। और क्योंकि ये धार्मिक अगुए विश्वास नहीं करते थे कि यीशु ही परमेश्वर था, उन्होंने उसके वचनों को परमेश्वर की निंदा करने के रूप में लिया: वे उसके वचनों को परमेश्वर की निंदा करने के रूप में लेते थे: परमेश्वर की बुराई करना या उसके विरुद्ध बोलना, या परमेश्वर होने का दावा करना।1 पुराने नियम में परमेश्वर की निंदा करना एक ऐसा दंडनीय अपराध था जो मृत्युदंड के योग्य था (लैव्यव्यवस्था 24:16)|
जैसा कि हमने पाठ ४७, में देखा, यीशु ने यह साबित करने के लिए आश्चर्यकर्म किए कि वह परमेश्वर है (मरकुस 2:10)| परन्तु यीशु ने पापों को क्षमा किया क्योंकि वह परमेश्वर था। इस बात पर विचार करें कि यह महान आश्चर्यकर्म के अन्य आश्चर्यकर्मों से किस प्रकार भिन्न है। पापों की क्षमा का ऐसा आश्चर्यकर्म है जो:
- सबसे बड़ी आवश्यकता की पूर्ति करता है - क्योंकि पाप और परमेश्वर से अलगाव मनुष्य की सबसे बड़ी समस्या है, और परमेश्वर के साथ संबंध की पुनःस्थापना और मेल-मिलाप मनुष्य की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
- सबसे अधिक प्रभाव डालता है - शारीरिक चंगाई तो थोड़ी देर के लिए होती है। पापों की क्षमा का परिणाम होता है अनंत जीवन। एक ऐसा आश्चर्यकर्म है जो सदा सर्वदा के लिए होता है।
- महानतम उद्देश्य को पूर्ण करता है - यीशु ने कहा कि वह खोए हुओं को ढूँढ़ने और उनका उद्धार करने आया है (लूका 19:10)| इस उद्देश्य की पूर्ति से परमेश्वर के उस सर्वोत्तम उद्देश्य की पूर्ति होती है जिसे "हाईएस्ट गुड" कहते हैं अर्थात् "परमेश्वर की संगति में बिताया गया एक धर्मी जीवन" और जिसके फलस्वरूप परमेश्वर को महानतम महिमा प्राप्त होती है।
- सबसे बड़ी कीमत की माँग करता है - इसके लिए परमेश्वर के पुत्र की मृत्यु अनिवार्य थी।
- अधिक से अधिक लोगों के लिए उपलब्ध है - "जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा।" (रोमियों 10:13).
पूछें और मनन करें
- आपको क्या लगता है कि उसके समय के धार्मिक अगुवों को यीशु से ऐसी समस्या क्यों थी? क्या आपको लगता है कि ऐसा केवल इसलिए था क्योंकि वे सोचते थे कि उसने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया था या फिर आपको लगता है कि इससे बढ़कर कोई और बात थी?
- क्या आपको लगता है कि यीशु के दिनों में लोग क्षमादान के आश्चर्यकर्म की तुलना में प्रत्यक्ष आश्चर्यकर्मों से अधिक प्रभावित थे? आज इसके बारे में क्या सोचते हैं? क्यों?
निर्णय लें और करें
उसके पुत्र यीशु के माध्यम से परमेश्वर से प्राप्त पापों की क्षमा एक ऐसा आश्चर्यकर्म है जिसे प्रत्येक व्यक्ति दूसरे के साथ साझा कर सकता है, इसे प्राप्त करके और साथ-साथ इसके बारे में दूसरों को बता कर। यदि आपने परमेश्वर से पापों की क्षमा का दान नहीं पाया है, यदि आप निश्चित रूप से नहीं जानते हैं कि आपके पापों को क्षमा कर दिया गया है तो तुरंत इस अध्ययन मार्गदर्शिका के अंत में 'परमेश्वर को जानना' खंड में जाएँ और अब जो कुछ भी पढ़े हैं उस पर ईमानदारी से विचार करें। परमेश्वर को जाना जा सकता है - और वह चाहता है कि आप उसे जाने।
यदि आपके मन में इस बात का कोई संदेह नहीं है कि आपको परमेश्वर की क्षमा प्राप्त हुई है, तो आप जानते हैं कि सच्ची स्वतंत्रता कैसी होती है। यह कभी न भूलें कि आपके चारों ओर ऐसे लोग हैं जिन्होंने कभी इसका अनुभव नहीं किया है। संसार में प्रत्येक व्यक्ति को परमेश्वर की क्षमा की आवश्यकता है...चाहे वे इसे जानते हों या नहीं।
एक मायने में, हम सब भूखे भिखारियों के समान हैं जिन्हें क्षमा की रोटी की आवश्यकता है। यदि आपको परमेश्वर की क्षमा प्राप्त हुई है, तो आपने इस रोटी को पाया और चखा है। क्या आपको दूसरों को यह नहीं बताना चाहिए कि वे इसे कहाँ पा सकते हैं? यीशु ने उन से कहा, "जीवन की रोटी मैं हूँ: जो मेरे पास आता है वह कभी भूखा न होगा, और जो मुझ पर विश्वास करता है वह कभी प्यासा न होगा।" (यूहन्ना 6:35).
अधिक अध्ययन के लिए पढ़ें
- Oswald Chambers, The Forgiveness of God. (© My Utmost for His Highest Daily Devotional, RBC Ministries, 2006). (http://utmost.org/classic/the-forgiveness-of-god-classic/). Retrieved November 1, 2006.
- John F. MacArthur, The Freedom and Power of Forgiveness. (© John F. MacArthur, Crossway Boos, A Division of Good News Publishers, Wheaton, Illinois, 1998). From an excerpt on p. 18: “... then, are the basic truths underlying the Christian doctrine of forgiveness: God is the one who must accomplish forgiveness of sins; it is not possible for the sinner to earn his ...” Also includes contributions from Charles H. Spurgeon, and Alexander MacLaren. (http://www.amazon.com/Freedom–Power–Forgiveness–John–MacArthur/dp/0891079793/sr=1–33/qid=1162420339/ref=sr_1_33/102–6866998–7379368?ie=UTF8&s=books).
Footnotes
1Merrill Unger, R.K. Harrison, Howard Vos, Cyril Barber. Blasphemy [A Definition]. (Unger’s New Bible Dictionary, 2006). “BLASPHEMY (Gk. ... Sometimes, perhaps, “blasphemy” has been retained by translators when the general meaning “evil–speaking” or “slander” might have been better (Psalm 74:18; Col. 3:8). ... There are two general forms of blasphemy: (1) Attributing some evil to God, or denying Him some good that we should attribute to Him (Leviticus 24:11; Romans 2:24). ... (2) Giving the attributes of God to a creature–which form of blasphemy the Jews charged Jesus with (Matthew 26:65; Luke 5:21; John 10:36).”