परमेश्वर के बिना परमेश्वर की इच्छा का पीछा करने से बचें।

संसार अभी भी उनके नेक इरादों का बोझ उठा रहा है


प्रस्तावना

"अब्राम की पत्नी सारै के कोई सन्तान न थी। उसके हाजिरा नाम की एक मिस्री दासी थी। सारै ने अब्राम से कहा, “देख, यहोवा ने तो मेरी कोख बन्द कर रखी है, इसलिये मैं तुझ से विनती करती हूँ कि तू मेरी दासी के पास जा; सम्भव है कि मेरा घर उसके द्वारा बस जाए।” सारै की यह बात अब्राम ने मान ली।"

– उत्पत्ति १६:१-२

"लेकिन अब्राहम से की गई परमेश्वर की प्रतिज्ञा कैसे पूरी हो सकती थी? क्योंकि सारा की संतान होना तो असंभव लग रहा था। परमेश्वर की तथा उसके समय की प्रतीक्षा करने के बजाय, सारा ने अपनी दासी हाजिरा को अब्राहम को दिया। और हाजिरा ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम इश्माएल था। आखिरकार, जैसा कि परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की थी सारा ने भी एक पुत्र को जन्म दिया। उन्होंने उसका नाम रखा - इसहाक। और सारा हाजिरा और इश्माएल के प्रति कड़वाट रखने लगी। अब्राहम व्याकुल हो उठा।

– “आशा” अध्याय ५ 

ध्यान से देखें और विचार करें

एक बड़ी जाति का मूलपिता बनाएगा और उसके द्वारा समस्त जातियों को आशीष देगा। आज का पाठ परमेश्वर द्वारा पहली बार प्रतिज्ञा दिए जाने के दस वर्ष उपरांत अब्राहम पर दृष्टि डालता है (उत्पत्ति  12:1-3)| अब्राहम की पत्नी सारा की आयु ७० वर्ष है और अभी भी अब्राहम और उसकी कोई संतान नहीं है! इसलिए सारा एक पत्नी का सबसे प्रिय विशेषाधिकार, अर्थात् अपने पति के अविभाजित प्रेम का अधिकार, छोड़ देती है, और अपनी दासी हाजिरा को अब्राहम को दे देती है, ताकि वह उसके द्वारा एक संतान उत्पन्न कर सके और इस प्रकार परमेश्वर की प्रतिज्ञा को पूर्ण कर सके। और अवश्य ही, अब्राहम मना कर सकता था परंतु उसने ऐसा नहीं किया।

न केवल सारा के इस योजना ने उसके वैवाहिक जीवन में उथल-पुथल मचा दी बल्कि सारा की मूर्खता से जो महासंघर्ष और मानव त्रासदी हुई, वह आज भी महसूस की जा रही है। हाजिरा का पुत्र, इश्माएल, हमारे संसार की अरब जातियों का मूलपिता ठहरेगा और सारा का पुत्र, जिसे वह बाद में गर्भधारण कर उत्पन्न करेगी, इस्राएल जाति का मूलपिता ठहरेगा। शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो जब समाचार मीडिया इजराइल-अरब संघर्ष से संबंधित कोई हिंसक घटना और जिस भूमि को देने की प्रतिज्ञा परमेश्वर ने अब्राहम से की थी, उसके स्वामित्व अधिकार सम्बंधित विवाद को सामने न लाता हो।1

आगे बढ़ने से पहले, स्मरण करें कि परमेश्वर की कहानी के हमारे अध्ययन में हमने बार-बार सामने आने वाला एक मूल-विषय देखा है। हमारे दृष्टिकोण से जो घटना विनाशकारी प्रतीत होती है, वह प्रायः परमेश्वर के अनंत उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए उसकी उच्च योजना का एक आवश्यक भाग होती है। उदाहरण के लिए, बाबेल की मीनार पर लोगों के अहंकार के उत्तर में, परमेश्वर ने उनकी भाषा में गड़बड़ी डाल दी। परिणामस्वरूप अराजकता फैल गई, और परमेश्वर ने लोगों को पृथ्वी पर तितर-बितर कर दिया। परंतु यह उन जातियों का आरंभ भी था, जिस रूप में आज हम उन्हें जानते हैं। और अंततः परमेश्वर महिमा पाएगा और मानवजाति को कुछ ऐसा करने के द्वारा आशीष देगा जो केवल वही कर सकता है, अर्थात् जातियों को परमेश्वर और एक दूसरे के साथ पूर्ण एकता और शांति में रहने के लिए एक साथ लाना।

आज हम जिस घटना पर विचार कर रहे हैं, वह मानव इतिहास के सबसे बड़े संघर्षों में से एक बन गई है। आप की परवरिश जिस संस्कृति में हुई है उसके आधार पर, इस संघर्ष को आसानी से उन लोगों के जो सही हैं और उन लोगों के जो गलत हैं, के बीच, "अच्छे लोगों" और "बुरे लोगों " के बीच की लड़ाई के रूप में  समझ सकते हैं। पर सच, यह उस से कहीं अधिक गहरी बात है। जैसा कि हम अगले पाठ में देखेंगे, परमेश्वर अब भी सब बातों पर अपना नियंत्रण बनाए हुए है और वह इस स्थिति का उपयोग अपनी महिमा के लिए करेगा! जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं, इन दो महान सत्यों को स्मरण रखें: १) परमेश्वर स्वर्ग को हर जाति के लोगों से आबाद करेगा,2 और २) हर संघर्ष के पीछे असली शत्रु शैतान है।3

पूछें और मनन करें

हमारे लिए यह पूछना आसान है, "सारा ऐसा कैसे कर सकती थी?" किंतु सारा को इस बात का ज़रा भी अंदाजा नहीं था कि उसके इस कृत्य के कितने दूरगामी परिणाम होंगे। और कहीं ऐसा न हो कि हम सारा के प्रति बहुत कठोर हो जाएँ, हमें सारा की उस सोच को समझना होगा जिसके कारण सारा ने ऐसा किया, क्योंकि हम ने भी संभवतः कभी न कभी अपने मन में इसी प्रकार के विचारों को आने दिया होगा।

सारा जानती थी कि परमेश्वर ने क्या प्रतिज्ञा दी थी, पर संभवतः वह सोचती होगी कि उस प्रतिज्ञा में कौन-सी भूमिका उसे निभानी है। आपने अवश्य ही वह कहावत सुनी होगी, "ईश्वर उनकी मदद करता है जो स्वयं की मदद करते हैं।" जबकि, यह एक कर्तव्यनिष्ठ, ज़िम्मेदारी भरा रवैया लग सकता है, परन्तु वास्तव में, उस प्रकार का दृष्टिकोण परमेश्वर की इच्छा के विपरीत स्वयं की इच्छा पनपने के लिए एक उपजाऊ भूमि का कार्य करता है। और एक बार जब आप अपनी मन-मरज़ी की राह पर निकल पड़ते हैं तो अपने कृत्यों को सही ठहराना और यह विश्वास करना कि आप जो कर रहे हैं, सही कर रहे हैं, कठिन नहीं होता है।

आप काफ़ी हद तक कल्पना कर सकते हैं कि कैसे कुछ लोग वास्तव में सारा के कृत्य को नेक और त्याग से भरा मानते हैं। इसके अलावा, उसने जो प्रस्ताव दिया था वह उस बहुविवाही संस्कृति में असामान्य बात नहीं थी जिसमें सारा और अब्राहम ने अपना घर बसाया था। और  इस समय तक, परमेश्वर ने केवल इतना ही कहा था कि प्रतिज्ञा किया हुआ वारिस अब्राहम के द्वारा आएगा  (उत्पत्ति  15:4)| यह बात परमेश्वर ने बहुत बाद में बताई कि अब्राहम से की गई उसकी प्रतिज्ञा सारा से उत्पन्न पुत्र के माध्यम से ही पूर्ण होगी (उत्पत्ति  17:15-19)|

  • क्या आप स्वयं को वही चीज़ करते हुए देख सकते हैं जो सारा और अब्राहम ने की थी? क्यों या क्यों नहीं?
  • आप इस कहावत के बारे में क्या सोचते हैं "ईश्वर उनकी मदद करता है जो स्वयं की मदद करते हैं"? आप इस बात से सहमत हैं या असहमत ?
  • क्या आप किसी ऐसी स्थिति के बारे में सोच सकते हैं जब आप जानते थे कि कुछ किया जाना चाहिए, परन्तु अपनी भूमिका और परमेश्वर की भूमिका के बीच के अंतर को जानते हुए, आपने  उस भावना से से संघर्ष किया? 

निर्णय लें और करें

इस बात पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि परमेश्वर की कहानी में इस समय तक सारा को वास्तव में सारै कहा जाता है, और अब्राहम को अब्राम कहा जाता है। समय की कमी के कारण, 'आशा' इस पर अधिक रोशनी नहीं डालती है। परंतु बाइबल के विवरण के अनुसार, इश्माएल के जन्म के बाद, परमेश्वर ने उनके नाम बदल दिए  (उत्पत्ति 17:5, 15)| सारै का शाब्दिक अर्थ है "झगड़ालू स्त्री" और अब्राम नाम का अर्थ है “पूज्य पिता”। परंतु सही समय आने पर परमेश्वर ने उनके नाम बदल दिए। सारा का अर्थ है "राजकुमारी" और अब्राहम का अर्थ है "फलदायी पिता" या "एक भीड़ का पिता।"

एक "झगड़ालू स्त्री" किसी कार्य को करने के लिए चालबाज़ी और साँठ-गाँठ का प्रयोग कर सकती है। किन्तु एक "राजकुमारी" को यह विशेषाधिकार प्राप्त होता है कि वह अपने पिता, राजा, को उसके लिए कुछ भी करने के लिए कह सकती है। कुछ लोगों को देखकर ऐसा प्रतीत हो सकता है कि वे चीज़ों को अपने स्वयं के प्रयास से करते हैं। परंतु केवल परमेश्वर ही एक व्यक्ति को "फलदायी" बना सकता है (भजन संहिता  127:1-3)|

अब्राहम (अब्राम) और सारा (सारै) परमेश्वर की इच्छा को जानते थे, परंतु उनके भीतर हुए परमेश्वर के ईश्वरीय कार्यों के अलावा, वे उसके मार्ग को नहीं जानते थे। यदि आप परमेश्वर का मार्ग खोज रहे हैं तो परमेश्वर से विनती करें कि वह आपको दिखाए, और फिर उसके समय की प्रतीक्षा करें। मामलों को अपने हाथ में न लें। परमेश्वर के बिना परमेश्वर की इच्छा का पीछा करने से बचें।

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Footnotes

1Timeline: A History of the Land. (From the April 15, 2002 Issue of The Baptist Standard; © 2006 by Baptist Standard Publishing Co). (http://www.baptiststandard.com/2002/4_15/pages/mideast_timeline.html). Retrieved November 16, 2006. Although this timeline does not extend past the year 1993, it nonetheless overviews the centuries of unrest in the Middle East.
2Revelation 7:9.
3Ephesians 6:12. Revisit Lessons 14–17 of this Study Guide.

Scripture quotations taken from the NASB