आशीष से बँधुआई
इस चक्र में आप कहाँ हैं?
प्रस्तावना
लगभग एक हज़ार वर्ष तक, इब्री लोगों ने परमेश्वर की आज्ञा अनुसार जीवन जीने का प्रयास किया। परंतु बहुत बार वे परमेश्वर से दूर चले गए और कई बार तो पराए देवताओं के पीछे भी हो लिए। जब वे परमेश्वर की ओर नहीं फिरते थे, तब परमेश्वर उन्हें अनुशासित करता था - अक्सर पराए देशों को उनके देश पर आक्रमण करने और उन पर शासन करने के लिए भेज कर। तब इब्री लोग अपना विश्वासघात स्वीकार करते और परमेश्वर को छुटकारे के लिए पुकारते। तब परमेश्वर एक अगुआ खड़ा करता ताकि वह लोगों को उनके सताने वालों से छुटकारा दिलाए। और लोग परमेश्वर के मार्ग के अनुसार जीने की अपनी प्रतिज्ञा को फिर से ताज़ा करते। आशीष से बँधुआई, फिर,आशीष से बँधुआई, बार-बार इब्री लोग इसलिए बुलाए गए कि संसार को ज्ञात हो कि परमेश्वर कैसा है। किन्तु पाप के कारण जिसने संसार को संक्रमित कर दिया था, वे बिना गिरे परमेश्वर के मार्गों पर नहीं चल सके।"
– "आशा" अध्याय ७
ध्यान से देखें और विचार करें
जब हम इस अध्याय की गहराई में जाते हैं, तो यह ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है कि "आशा" बाइबल का एक संक्षिप्त अवलोकन है। एक ८० मिनट का वीडियो के लिए संभवतः संपूर्ण बाइबल समाविष्ट करना संभव नहीं था। "आशा" से उद्घृत उपर्युक्त अंश बताता है कि हज़ार वर्षों से भी अधिक की अवधि के दौरान क्या-क्या हुआ? इस समय के दौरान कई राजाओं और भविष्यवक्ताओं ने इब्रानी इतिहास में अपनी छाप छोड़ी। उनकी कहानियाँ बाइबल में कई पुस्तकों में दर्ज़ हैं। मगर, यदि आपको इस समय-अवधि का वर्णन मात्र एक अनुच्छेद में करना हो तो, उपर्युक्त अंश बिल्कुल सही रहेगा।
यह उद्धृत अंश एक चक्र का वर्णन करता है जो बार-बार इब्री लोगों के इतिहास में दोहराया गया था। किसी लेखक ने इस चक्र का वर्णन निम्नलिखित रुप से किया है:
विश्वास से आज्ञाकारिता
आज्ञाकारिता से आशीष
आशीष से बहुतायत
बहुतायत से स्वार्थीपन
स्वार्थीपन से न्याय
न्याय से बँधुआई
बँधुआई से टूटापन
टूटापन से विश्वास ...1
मिस्र देश से निर्गमन के दौरान हुए परमेश्वर के आश्चर्यकर्मों को देखकर इब्री लोगों के मन में परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने के लिए बहुत विश्वास था। परमेश्वर ने उनसे जो कुछ भी करने के लिए कहा, उन्होंने उसका तत्परता से पालन किया। परमेश्वर ने उनसे प्रतिज्ञा की कि जब वे लोग आज्ञा का पालन करेंगे, तो वह उन्हें आशीष देगा, और उसने ऐसा ही किया। सच तो यह है कि उन्हें बहुतायत से आशीषित किया गया। और इस प्रकार एक चक्र का आरंभ हो गया और वह सदियों तक ज्यों का त्यों चलता गया।
ग़ौर करें कि आशीष और बहुतायत में अंतर होता है। बहुतायत का अर्थ प्रायः होता है हमारी आवश्यकता से अधिक पाना। परमेश्वर के दृष्टिकोण के अनुसार, हमारे पास हमारी आवश्यकता से अधिक होना, इस ज़िम्मेदारी का आह्वान करता है कि उस अतिरिक्त भाग को दूसरे लोगों को आशीष देकर परमेश्वर की महिमा के लिए उपयोग में लाया जाए। इससे कम कुछ भी करना स्वार्थीपन है। इब्री लोगों के संदर्भ में स्वार्थीपन के बाद उन पर न्याय पड़ा। नए नियम में एक पद है (इब्रानियों 12:6) जो हमें बताता है कि परमेश्वर उन लोगों को अनुशासित करता है जिनसे वह प्रेम करता है। इब्री लोगों पर परमेश्वर का न्याय उनके प्रति उसके प्रेम से प्रेरित था। उस न्याय का परिणाम प्रायः यह होता था कि वे लोग दूसरी जातियों द्वारा बँधुआई में ले जाए जाते थे, जो उन्हें टूटेपन के और उनके जीवन में परमेश्वर की आवश्यकता के एहसास के स्थान पर ले आता था।
पूछें और मनन करें
- क्या आप जातियों, लोकसमूहों या व्यक्तियों की किन्हीं ऐसी विशिष्ट परिस्थितियों के बारे में सोच सकते हैं, जिनमें उपर्युक्त अभिज्ञात चक्र पाया गया हो? वर्णन करें।
- इस चक्र में सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन बहुतायत से स्वार्थीपन की ओर है। क्या आपने अपने जीवन में ऐसा कोई परिवर्तन देखा है? आपको क्या लगता है इससे कैसे बचा जा सकता था? वर्णन करें।
- आप स्वयं को इस चक्र में कहाँ रखते हैं? वर्णन करें।
निर्णय लें और करें
इस चक्र में आज्ञाकारिता के उस चरण के बारे में सोचें जिस पर हम विचार कर रहे हैं। विश्वास परमेश्वर का दिया हुआ एक उपहार है (इफिसियों 2:8).
हम परमेश्वर से विश्वास माँग सकते हैं किंतु उसका निर्माण नहीं कर सकते। टूटापन परमेश्वर से अलग होने पर हमारी अपर्याप्तता का एक ज़बरदस्त एहसास है। हम, हमारे जीवन में हमें टूटा मन देने के लिए, परमेश्वर के कार्य का विरोध तो कर सकते हैं, किन्तु हम स्वयं टूटा मन नहीं पा सकते। आज्ञाकारिता के अलावा इस चक्र का हर एक चरण, वह है जो परमेश्वर हमारे लिए या हमारे प्रति करता है। आज्ञाकारिता, दूसरी ओर, मनुष्य की ज़िम्मेदारी है।आज्ञाकारिता के सच्चे अर्थ पर विचार करें। पद में लिखा है, 1 शमूएल 15:22 "मानना तो बलि चढ़ाने से...उत्तम है।" बलिदान और आज्ञाकारिता में अंतर होता है। एक बलिदान आज्ञाकारिता का कार्य हो सकता है किंतु यह कुछ और भी हो सकता है। एक व्यक्ति जब चाहे, जहाँ चाहे और जैसे चाहे बलिदान चढ़ाने में पहल कर सकता है। ऐसा संभव है कि कोई व्यक्ति एक ऐसा बलिदान चढ़ाए जिसकी माँग परमेश्वर ने उससे कभी नहीं की हो।
आज्ञाकारिता एक अलग बात है। आज्ञाकारिता परमेश्वर के प्रति मनुष्य की एकमात्र उचित प्रतिकिया है। सच्ची आज्ञाकारिता हृदय से आरंभ होती है। आज्ञाकारिता आशीष लाती है। आज्ञाकारिता ही वह एकमात्र साधन है जो बहुतायत को स्वार्थीपन उत्पन्न करने से रोकता है।
जिस चक्र ने इतने वर्षों तक इब्री लोगों का वर्णन किया, उस चक्र में अपने स्थान के बारे में विचार करें। आप जहाँ कहीं भी हों, हृदय से आज्ञाकारिता के साथ परमेश्वर के प्रति उचित प्रतिक्रिया दें।
अधिक अध्ययन के लिए पढ़ें
- John Piper, The Pleasure of God in Obedience. (© Desiring God. Sermon delivered March 29, 1987). (http://www.desiringgod.org/ResourceLibrary/Sermons/ByDate/1987/588_The_Pleasure_of_God_in_Obedience/) Retrieved October 19, 2006.
Footnotes
1Fred Carpenter, GENERATION, Personal Study Guide. (© Mars Hill Productions, 1997, page 10).