फूलो-फलो और कई गुना भर जाओ…या नहीं
आशीष पाने का परमेश्वर का मार्ग ही आशीष पाने का एकमात्र मार्ग है
प्रस्तावना
"फिर परमेश्वर ने नूह और उसके पुत्रों को आशीष दी और उन से कहा कि फूलो-फलो, और बढ़ो, और पृथ्वी में भर जाओ।"
– उत्पत्ति ९:१
"सारी पृथ्वी पर एक ही भाषा, और एक ही बोली थी। उस समय लोग पूर्व की और चलते चलते शिनार देश में एक मैदान पाकर उस में बस गए।....फिर उन्होंने कहा, आओ, हम एक नगर और एक गुम्मट बना लें, जिसकी चोटी आकाश से बातें करे, इस प्रकार से हम अपना नाम करें ऐसा न हो कि हम को सारी पृथ्वी पर फैलना पड़े।"
– उत्पत्ति ११:१, २ और ४
"जब जल सूख गया तो जहाज एक पहाड़ी पर आकर ठहर गया और सब पशु जहाज से निकलकर अपनी अपनी राह चले गए। इस प्रकार संसार में फैली बुराई पर परमेश्वर द्वारा दिए गए दंड से नूह और उसका परिवार बच गए, इसलिए नहीं कि वे पाप रहित थे बल्कि इसलिए कि उन्होंने परमेश्वर पर विश्वास किया। और परमेश्वर ने नूह और उसके पुत्रों को आशीष दी और कहा, “फूलो फलो और सारी पृथ्वी में भर जाओ।“ वे परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार सारी पृथ्वी पर नहीं फैले। इसके विपरीत, उन्होंने एक नगर बसा लिया। फिर उन्होंने एक मीनार बनाई जो आकाश को छूती थी। परमेश्वर इससे प्रसन्न नहीं था।"
– "आशा" अध्याय ४
ध्यान से देखें और विचार करें
क्या कभी आपकी यह इच्छा हुई कि आप दोबारा से एक नई शुरुआत करें? बहरहाल, जल-प्रलय के बाद, नूह और उसके परिवार ने मानव इतिहास में सबसे उल्लेखनीय नई शुरुआत का अनुभव किया। उनके आगे का जीवन एक खाली तख्ती के समान था जिस पर उन्हें अपने जीवन के लिए एक नई कहानी की शुरुआत करनी थी। इसके अतिरिक्त, परमेश्वर ने उनसे समृद्ध होने की आशीष के वचन कहे (उत्पत्ति ९:१,७)। और फिर परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की कि वह संसार को फिर कभी जल-प्रलय से नाश नहीं करेगा...और उसने अपनी प्रतिज्ञा पर प्रथम इंद्रधनुष के द्वारा मुहर लगा दी (उत्पत्ति ९:१३-१५)!
यह पुनर्स्थापना करने का कितना अच्छा अवसर था। दुर्भाग्यवश, इसे कभी पहचाना ही नहीं गया।
परमेश्वर ने नूह और उसके परिवार से कहा कि वे फूले फले और पृथ्वी पर भर जाएँ। इसके विपरीत वे एक ही स्थान पर इकठ्ठे हो गए और उन्होंने एक नगर बसा लिया। वे चाहते थे कि वे एक ही स्थान में, एक ही दल के लोग बन कर रहें। परंतु परमेश्वर ऐसा नहीं चाहता था। अगले पाठ में हम देखेंगे कि परमेश्वर ने उनकी इस अनाज्ञाकारिता के प्रति क्या प्रतिक्रिया दर्शायी, किन्तु आज, आइए, इस बात पर चिंतन करते हैं कि उन्होंने आशीष के मार्ग पर चलने के एक अतुल्य सुअवसर को कैसे जाने दिया!
परमेश्वर की कहानी के अनुसार, नूह और उसके परिवार ने वर्ष के दूसरे महीने के दूसरे सप्ताह में जहाज में प्रवेश किया। अगले वर्ष के दूसरे महीने के २७वें दिन वे जहाज से बाहर आए (उत्पत्ति ८:१४-१५)। ३६५ दिनों के चंद्र पंचांग को मानें तो नूह और उसका परिवार पूरे एक वर्ष तक जहाज पर रहा होगा! 1 इससे पहले कि हम आगे बढ़े इस विचार पर थोड़ा मनन करें।
जब वे लोग अंततः जहाज से बाहर आए तब उनकी मनोदशा क्या रही होगी? लगभग एक वर्ष तक सब कुछ जल में डूबा रहा था, उसके बाद उन्होंने पृथ्वी पर क्या देखा होगा? क्या वह दृश्य अजीब, भयावह या फिर सम्भवतः अवास्तविक लग रहा होगा?
सब लोगों में से, कम से कम नूह और उसके परिवार को तो परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए तैयार रहना चाहिए था, चाहे उन्होंने जो कुछ भी देखा हो।
- समस्त संसार में से केवल वे ही थे जिन्हें परमेश्वर द्वारा जल-प्रलय से सुरक्षित बचाया गया था।
- उन्होंने व्यक्तिगत रूप से परमेश्वर की वाणी सुनी थी और उसे आश्चर्यकर्म करते हुए भी देखा था।
- परमेश्वर ने उन से आशीष के वचन कहे थे कि उनके जीवन फलदाई हो सकें।
फिर भी, मौलिक रुप से परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी विश्वासयोग्यता का अनुभव करने के बावजूद नूह का परिवार वह करने में विफल रहा जो परमेश्वर ने उनसे करने के लिए कहा था। या तो उन्होंने ध्यान से सुना नहीं या फिर उन्होंने सुना किंतु आज्ञा नहीं मानी। हो सकता है वे लोग इसलिए इकठ्ठे रहते थे क्योंकि वे डरते थे। कारण चाहे जो भी हो, उन्होंने परमेश्वर की अवज्ञा की। उन्होंने पृथ्वी पर भर जाने का प्रयास नहीं किया।
आज के पाठ से, निम्न बातों पर विचार करें:
- परमेश्वर चाहता था कि नूह और उसका परिवार समृद्ध हो और वे पृथ्वी पर "भर" जाएँ (उत्पत्ति 9:1)| परमेश्वर की आशीष पाने का वही मार्ग था। किंतु आशीष पाने का मार्ग संभवतः उन्हें आशीष की तरह नहीं लगा। उन लोगों को पृथ्वी पर "फैलने" का डर था (उत्पत्ति ११:४)| ।पृथ्वी पर "भर जाने" (परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार) और पृथ्वी पर "फैलने" के बीच का अंतर बस दृष्टिकोण का है: एक है स्वयं चुनना और दूसरा है बाध्य किया जाना।
- वे अपना नाम करना चाहते थे (उत्पत्ति ११:४)। यह घमंडयुक्त अभिप्रेरणा उसी प्रवृति की तरह है जिसके कारण शैतान का पतन हुआ था (पाठ १४)।
- यद्यपि वे लोग परमेश्वर का अनुसरण नहीं करना चाहते थे, तथापि वे स्वर्ग जाना चाहते थे। परंतु वे लोग उसे अपने बनाए मार्ग के माध्यम से चाहते थे - एक मीनार बनाकर (उत्पत्ति ११:४)|
पूछें और मनन करें
- आपको क्या लगता है कि क्यों परमेश्वर के साथ इतना सब कुछ देखने और अनुभव करने के बावजूद नूह और उसका परिवार परमेश्वर के द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करने में विफल रहा?
- क्या आप किसी ऐसी परिस्थिति के बारे में सोच सकते हैं जब परमेश्वर ने आपको कुछ करने के लिए कहा हो और आपको वह पहले-पहल तो आशीष न लगा हो किंतु अंत में वह आशीष ही सिद्ध हुआ हो?
- आप ऐसे व्यक्ति से क्या कहेंगे जो स्वर्ग तो जाना चाहता है किन्तु अपने मार्ग से, परमेश्वर के मार्ग से नहीं?
- क्या आप स्वयं को, किसी भी प्रकार से, नूह की आत्मिक "गिरावट" के साथ जुड़ा हुआ पाते हैं। क्या आपको लगता है कि एक समय था जब आप परमेश्वर पर आज की तुलना में अधिक मौलिक रुप से भरोसा करते थे? क्यों? यदि हाँ, तो ऐसा क्या हुआ?
निर्णय लें और करें
पिछले अध्याय में आप परमेश्वर पर भरोसा करने और आज्ञा-पालन करने के लिए प्रोत्साहित हुए थे, जैसे कि नूह था जब उसने जहाज का निर्माण किया था। किंतु जब हम नूह का शेष जीवन देखते हैं, तब हम स्पष्ट रूप से एक चेतावनी देखते हैं। भरोसा करना और आज्ञाकारी बने रहना न छोड़ें। यदि आप आत्मिक रूप से कमज़ोर पड़ रहे हैं तो इस समस्या का समाधान ढूँढने में देरी न करें।
बाबुल के लोगों ने स्वर्ग जाने के लिए एक मीनार बनाई। इसी प्रकार समस्त इतिहास में लोगों ने स्वर्ग जाने के अपने-अपने मार्ग या धर्म बनाए हैं।2 स्वर्ग जाने का केवल एक ही मार्ग है...और वह है परमेश्वर का मार्ग।
अधिक अध्ययन के लिए पढ़ें
- Jimmy Williams, Why a Moral Life Won’t Get Us to Heaven (Probe Ministries, 1998). (http://www.probe.org/site/c.fdKEIMNsEoG/b.4219775/k.1266/Why_A_Moral_Life_Wont_Get_Us_to_Heaven.htm). Retrieved October 9, 2006.
- World Religions Index Table on Major World Religions (Probe Ministries, 1995–2006). (http://www.leaderu.com/wri-table2/God.html). Retrieved October 9, 2006. This site provides a more comprehensive exploration of the beliefs of major world religions across a grid of subjects (such as God, Man and the Universe, Salvation and the Afterlife, Morality, and Worship). Links to data on Biblical Christianity, Buddhism, Hinduism, Islam, Judaism, and Primitive Religion.
Footnotes
1How Long Did It Take Noah to Build the Ark? How Long Was Noah on the Ark? (http://www.gotquestions.org/Noahs–ark–questions.html). Retrieved October 8, 2006.
2How Major Religions View Salvation and the Afterlife. (Probe Ministries, 1995–2006). NOTE: Taken from: The Spirit of Truth and the Spirit of Error 2. Compiled by Steven Cory. (Moody Bible Institute of Chicago. Moody Press, 1986). (http://www.leaderu.com/wri–table2/salvation.html). Retrieved October 8, 2006.