बाइबल का अनूठापन - भाग १
इतिहास में सबसे अनोखी और सबसे अधिक प्रकाशित पुस्तक।
ध्यान से देखें और विचार करें
बाइबल मानव इतिहास में, सबसे अधिक उद्धृत, सर्वाधिक अनुवादित तथा सबसे अधिक प्रकाशित पुस्तक है जिसकी रचना, विषय वस्तु और सटीकता अद्वितीय है|1 और हालाँकि बाइबल का अनूठापन इस बात का ठोस प्रमाण नहीं प्रस्तुत करता कि यह परमेश्वर का प्रकाशन है, किंतु फिर भी जब कोई सही मायने में इस शास्त्र के स्वरूप पर विचार करता है, तो जितना आसान उसके लिए इस बात पर विश्वास करना होता है कि यह परमेश्वर का कार्य है उतना ही कठिन उसके लिए इस बात पर यकीन करना होता है कि इसे मनुष्यों के द्वारा मात्र लिखा और संग्रहित किया गया है। इस बारे में सोचें।
बाइबल अपनी विविधता और तालमेल में अनूठी है।
लगभग १६०० वर्षों और ४० पीढ़ियों के दौरान, तीन महाद्वीपों (एशिया, अफ्रीका और यूरोप) और तीन भाषाओं (इब्रानी, अरामी और यूनानी) में अलग-अलग जीवन क्षेत्रों से संबंधित ४० से भी अधिक लेखकों द्वारा लिखित बाइबल जैसा शास्त्र संसार में कोई और नहीं है। इसमें इतिहास, भजन, भविष्यवाणी, व्यवस्था, दृष्टांत और उपदेश सम्मिलित हैं, और यह परमेश्वर की प्रकृति से लेकर मनुष्य की उत्पत्ति तक व्यापक विषयवस्तुओं (सैकड़ों विवादास्पद विषयों सहित) पर बात करती है। 2
इसके लेखकों और वस्तुविषय की इस विविधता पर विचार करते हुए हो सकता है कोई व्यक्ति इस बात की उम्मीद करे कि बाइबल में प्रस्तुत विषय-वस्तुओं और प्रसंगों में आपस में कोई न कोई टकराव या मतभेद तो अवश्य होगा, किंतु ऐसा नहीं है –
- बाइबल एक संपूर्ण महान गाथा है जो एक असाधारण चरित्र के इर्द-गिर्द केंद्रित है।
- बाइबल बड़ी समरसता और समाधान के साथ संपूर्ण शास्त्र में अनेक विषयों और प्रसंगो पर बात करती है। (उदाहरण के लिए बाइबल की पहली पुस्तक में जो स्वर्गलोक खो गया था, वह बाइबल की अंतिम पुस्तक में पुन: प्राप्त हो गया। बाइबल की पहली पुस्तक में जिस जीवन के वृक्ष तक पहुँचने का मार्ग बंद कर दिया गया था, वह बाइबल की अंतिम पुस्तक में सर्वदा के लिए खोल दिया गया।)
सिम्फनी या जुगलबंदी के अलग-अलग वाद्य-यंत्रों के समान, बाइबल का हर एक लेखक दूसरे लेखक से काफी अलग है। जब आप किसी ऑर्केस्ट्रा (वादक-समूह) को बिना किसी गलती के समरसता से बजते हुए सुनते हैं, तो आप बड़ी ही सहजता से मान लेते हैं कि वह एक निपुण संगीत निर्देशक द्वारा निर्देशित किया जा रहा है। तो फिर, बाइबल, जो विषयवस्तु और विस्तार में, किसी भी जुगलबंदी के संगीत लेख से कहीं अधिक जटिल है, उसके संदर्भ में हम अलग रीति से क्यों सोचें?
बाइबल अपनी पाठकीय विश्वसनीयता में अनूठी है।
क्योंकि संसार की सबसे महत्वपूर्ण प्राचीन साहित्यिक कृतियों की मूल हस्तलिपियाँ यदाकदा ही (यदि कभी हो) मौजूद होती हैं, इसलिए किसी भी प्राचीन शास्त्र के बारे में यह प्रश्न उठाया जाना चाहिए, "क्या मौजूद आरंभिक प्रतिलिपियाँ मूल दस्तावेजों की विषयवस्तु को सटीक रूप से प्रस्तुत करती हैं?" दूसरे शब्दों में, क्या मूल हस्तलिपि समय के साथ बदल गई है? पाठकीय विश्वसनीयता का निर्धारण करते समय विद्वान कई कारकों पर विचार करते हैं। वे कारक हैं –
- जिस विधि से वे प्रतिलिपियाँ बनाई गई थीं
- मूल हस्तलिपि और उसकी आरंभिक ज्ञात प्रतिलिपि के बीच का अंतराल
- मौजूद आरंभिक प्रतिलिपियों की संख्या
- आरंभिक प्रतिलिपियों की तुलनात्मक तालमेल या समानता
इन मानकों से मापे जाने पर, संसार में ऐसी एक भी पुस्तक नहीं है जो नए-नियम की पाठकीय विश्वसनीयता के निकट तक भी पहुँच पाती हों|3 इस पाठ के अंत में दी गई तालिका १ को ध्यान से देखने पर आप पाएँगे,4
कि नए-नियम की आरंभिक प्रतिलिपियाँ बनाने वाले लोग या तो मूल लेखकों के समकालीन थे या केवल कुछ पीढ़ियों के अंतराल पर थे। उस समय-अवधि के दौरान बनाई गई प्रतिलिपियों की संख्या पर भी ध्यान दें। बाइबल के नए नियम और अन्य प्राचीन कृतियों के बीच का अंतर बहुत चकित करनेवाला है।
बाइबल के नए नियम की आरंभिक प्रतिलिपियाँ बहुतायत से है किंतु पुराने नियम की प्रतिलिपियाँ बहुतायत से नहीं है। इसलिए पुराने नियम की पाठकीय विश्वसनीयता के बारे में बात करते हुए उस पद्धति को समझना महत्वपूर्ण है जिसके द्वारा इन प्राचीन हस्तलिपियों की नकल बनाई गई थी।
प्रतिलिपियाँ बनाने की प्रक्रिया५5 प्रतिलिपियाँ बनाने की प्रक्रिया५ लोगों के एक विशेष समूह तक ही सीमित थी जिन्हें यहूदी संस्कृति में शास्त्री कहा जाता था। शास्त्री लोग पेशेवर कलमकार थे जो हस्तलिपियों की यथासंभव उच्चतम सटीक नक़ल बनाने के लिए एक कड़ी सुनियोजित पद्धिति का उपयोग किया करते थे। उदाहरण के लिए:
- शास्त्रियों को वाक्य से वाक्य या शब्द से शब्द नकल बनाने की अनुमति नहीं थी, उन्हें अक्षर से अक्षर मिलाकर नकल बनानी होती थी।
- नए पृष्ठ पर लिखी गई प्रत्येक पंक्ति की लंबाई पुराने पृष्ठ की पंक्ति की लंबाई के एकदम बराबर होनी चाहिए। यदि मूल पृष्ठ पर पहली पंक्ति में नौ शब्द थे, तो प्रतिलिपि पृष्ठ पर पहली पंक्ति में भी नौ शब्द ही होने चाहिए।
- शास्त्री को मूल पृष्ठ की सटीक प्रतिलिपि बनानी होती थी ताकि पृष्ठ के कुल शब्दों के संख्या में कोई बदलाव नहीं आए। यदि किसी मूल पृष्ठ में २९६ शब्द हैं तो नकल बनाए जा रहे पृष्ठ में भी २९६ शब्द ही होने चाहिए।
- प्रत्येक पृष्ठ की नकल और एक दूसरे शास्त्री द्वारा उसकी जाँच होने के बाद, एक तीसरा शास्त्री यह बात सुनिश्चित करता था कि नकल बनाए गए पृष्ठ का मध्यम अक्षर और मूल पृष्ठ का मध्यम अक्षर एक समान हो।
- यदि प्रतिलिपि में एक भी त्रुटि पाई जाती थी तो उसे नष्ट कर दिया जाता था।
इन चरणों ने यह सुनिश्चित किया कि पुराने नियम की प्रतिलिपियों ने मूल हस्तलिपि की विषयवस्तु को सटीक रूप से प्रस्तुत किया है। जिस प्रकार से नए-नियम के विषय में कहते हैं, उसी प्रकार से संसार की कोई भी अन्य प्राचीन हस्तलिपि पुराने-नियम की पाठकीय विश्वसनीयता से आगे नहीं निकल पाई हैं।
पूछें और मनन करें
- आपने आज जो जानकारी पढ़ी, क्या उसने बाइबल को देखने का आपका नज़रिया बदला है?
- यदि हाँ, तो कैसे ? और यदि नहीं, तो क्यों नहीं?
- बाइबल को एक अलग नज़रिए से देखने के लिए या कुछ ऐसा देखने के लिए जो आपने अभी तक नहीं देखा है, आपको और किस की ज़रुरत है? (यह प्रश्न उन लोगों के लिए है जो पहले से ही बाइबल के बारे में जानते हैं और उनके लिए भी जो नहीं जानते)
निर्णय लें और करें
इस अध्ययन के अधिकांश पाठों की तुलना में आज का पाठ थोड़ा लंबा था। यदि आपको लगता है कि जो जानकारी यहाँ दी गई है वह आपके समझने के लिए बहुत अधिक है, तो बाद में समय निकालकर इस पर दोबारा से चिंतन करें।
तालिका १ - बाइबिल का अनूठापन
लेखक | कब लिखी गई | आरंभिक प्रतिलिपि | समय अवधि | कुल प्रतिलिपियाँ |
---|---|---|---|---|
सीज़र (गैलिक के युद्ध) | १००-४४ ई.पू. | ९०० ई. | १००० वर्ष | १० |
प्लेटो (चतुष्कृति) | ४२७-३४७ ई.पू. | ९०० ई. | १२०० वर्ष | ७ |
टैसिटस (वर्षक्रमिक इतिहास) | १०० ई. | ११०० ई. | १००० वर्ष | २० |
प्लिनी दि यंगर (इतिहास) | ६१-११३ ई. | ८५० ई. | ७५० वर्ष | ७ |
थ्यूसीडाइड्स (इतिहास) | ४६०-४०० ई.पू. | ९०० ई. | १३०० वर्ष | ८ |
सुएटोनियस (बारह कैसर के जीवन) | ७५-१६० ई. | ९५० ई. | ८०० वर्ष | ८ |
हेरोडोटस (इतिहास) | ४८०-४२५ ई.पू. | ९०० ई. | १३९० वर्ष | ८ |
सोफोक्लेस | ४९६-४०६ ई.पू. | १००० ई. | १४०० वर्ष | १९३ |
कैटलस | ५४ ई.पू. | १५५० ई. | १६०० वर्ष | ३ |
युरिपिडस | ४८०-४०६ ई.पू. | ११०० ई. | १५०० वर्ष | ९ |
डिमास्थेनीज़ | ३८३-३२२ ई.पू. | ११०० ई. | १३०० वर्ष | २०० |
अरस्तू | ३८४-३२२ ई.पू. | ११०० ई. | १४०० वर्ष | ४९ |
अरिस्तोफनेस | ४५०-३८५ ई.पू. | ९०० ई. | १२०० वर्ष | १० |
होमर (इलियड) | ९०० ई.पू. | ४०० ई.पू. | ५०० वर्ष | ६४३ |
नया-नियम | ४०-१०० ई. | १२५ ई. | २५ वर्ष | २४००० से अधिक (५३०० प्राचीन यूनानी; १०००० लातिन वल्गेट; ९३०० से अधिक अन्य) |
Footnotes
1All–Time Best Selling Books and Authors. (Internet Public Library, © 1995–2006 The Regents of the University of Michigan).
(http://www.ipl.org/div/farq/bestsellerFARQ.html). Retrieved November 13, 2006.
2Josh McDowell, Evidence That Demands A Verdict, Historical Evidences for the Christian Faith, Revised Edition.
(© Campus Crusade for Christ, 1972, 1979. Published by Here’s Life Publishers, San Bernardino, CA, 1972, Chapter 1, pp. 15–24).