अंतिम वचन

स्वर्गारोहण से पहले, यीशु ने दिव्य योजना के बारे में बताया।


प्रस्तावना

"फिर उसने उनसे कहा, “ये मेरी वे बातें हैं, जो मैं ने तुम्हारे साथ रहते हुए तुम से कही थीं कि अवश्य है कि जितनी बातें मूसा की व्यवस्था और भविष्यद्वक्‍ताओं और भजनों की पुस्तकों में मेरे विषय में लिखी हैं, सब पूरी हों।” तब उस ने पवित्रशास्त्र बूझने के लिये उनकी समझ खोल दी, और उनसे कहा, “यों लिखा है कि मसीह दु:ख उठाएगा, और तीसरे दिन मरे हुओं में से जी उठेगा, और यरूशलेम से लेकर सब जातियों में मन फिराव का और पापों की क्षमा का प्रचार, उसी के नाम से किया जाएगा। तुम इन सब बातों के गवाह हो। और देखो, जिसकी प्रतिज्ञा मेरे पिता ने की है, मैं उसको तुम पर उतारूँगा और जब तक स्वर्ग से सामर्थ्य न पाओ, तब तक तुम इसी नगर में ठहरे रहो।"

– लूका २४:४४-४९ 

उसने उनकी बुद्धि को खोला ताकि वे उन घटनाओं को जो घटी थीं, पुराने समयों के भविष्यवक्ताओं के द्वारा बताई जा रही बातों के प्रकाश में समझ सकें। उसने उन्हें यह समझाया कि पाप की क्षमा के लिए, यह आवश्यक था कि वह मृत्यु को सहे और फिर जी उठे। और उसने परमेश्वर के राज्य के विषय में बताया और कहा कि स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार उसे दिया गया है। अब समय आ गया था कि यीशु पिता के पास जाए, और एक स्थान तैयार करे, उन सब के लिए जो उससे प्रेम करते हैं। यीशु ने अपने अनुयायियों से प्रतिज्ञा की कि जल्द ही परमेश्वर का आत्मा उन पर आएगा और उन्हें सामर्थ्य देगा कि वे उसकी सच्चाई और प्रेम और क्षमा को समस्त संसार के साथ बाँटें। यह बताने के बाद, यीशु उन्हें छोड़कर बादलों में चढ़ गया।"  

– "आशा" अध्याय ११

ध्यान से देखें और विचार करें

जब हमें इस बात का आभास होता है कि अब समय कम रह गया है, तो अक्सर जो बातें हम कहना चाहते हैं उन्हें बहुत सावधानीपूर्वक चुनते हैं। इसी कारण अंतिम वचन बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण होते हैं; ये कभी-कभी जीवन को परिवर्तित करने वाले वचन भी बन जाते हैं। अपने पुनरुत्थान के बाद और स्वर्गारोहण से पहले के बीच के थोड़े-से किंतु अनमोल समय को यीशु ने अपने चेलों के साथ व्यतीत किया। उस दौरान, उसने उन्हें यह बातें समझायीं:

  • उसके साथ क्या हुआ था - यीशु मसीह ने उन्हें समझाया कि उसकी मृत्यु और पुनरुत्थान सबकुछ उस योजना के तहत था जिसे परमेश्वर के वचन में पहले से ही बताया जा चुका था। यह अनिवार्य था कि वह पापों की क्षमा के लिए मारा जाए।
  • उनके साथ अब आगे क्या होने वाला था -  यीशु को क्रूस पर चढ़ाने की पूर्व संध्या पर, उसने अपने चेलों को बताया कि वह अपने पिता के घर जाता है जहां वह उनके लिए स्वर्ग में एक जगह तैयार करेगा (यूहन्ना  14:2-3)। पर उसने उस दूसरे को भी भेजने की प्रतिज्ञा की, जिसे पिता परमेश्वर एक सहायक के नाम से बुलाता है (यूहन्ना 14:16-20)। जब यीशु के जाने का समय निकट आ रहा था, यीशु ने चेलों से की अपनी इस प्रतिज्ञा को पुनः दोहराया कि वह उसे भेजेगा जो वास्तव में परमेश्वर का आत्मा है और जो बाइबिल में पवित्र आत्मा के रूप में जाना जाता है (प्रेरितों के काम  2:17, प्रेरितों के काम 3:3; प्रेरितों के काम 4:31; प्रेरितों के काम 5:32).
  • उसके अनुयायियों को तब तक क्या करते रहना चाहिए जब तक कि वे उसके साथ फिर से नहीं मिल जाते - यीशु ने अपने अनुयायियों से कहा कि जब तक वह वापस नहीं आता तब तक उन्हें उस सत्य को जिसके वे गवाह ठहरे थे, समस्त संसार के साथ, प्रत्येक जाति के लोगों के साथ साझा करना है। अपने अध्ययन के अगले और अंतिम अध्याय में हम  पवित्र आत्मा को भेजने की यीशु की प्रतिज्ञा और उसकी सच्चाई को समस्त संसार में साझा करने के लिए उसके निर्देशों के बारे में अधिक गहराई से देखेंगे। किंतु इस पाठ में, यह उचित होगा कि हम उसकी मृत्यु और पुनरुत्थान को परमेश्वर की भव्य योजना के संदर्भ में जाँच कर, इस विषय में अपने अध्ययन को संपन्न करें।

हमारे अध्ययन के अगले और अंतिम अध्याय में, हम पवित्र आत्मा भेजने के यीशु के वादे और पूरी दुनिया के साथ अपनी सच्चाई साझा करने के उनके निर्देशों को अधिक बारीकी से देखेंगे। लेकिन इस पाठ में, यह उचित है कि हमें उनकी मृत्यु और पुनरुत्थान के अपने अध्ययन को भगवान की भव्य योजना के संदर्भ में जांच कर समाप्त करना चाहिए।

सबसे पहले,   लूका 24 में ध्यान दें कि यीशु ने जो कुछ कहा और किया वह उन सभी बातों की पूर्ति थी जो उसके बारे में मूसा की व्यवस्था, भविष्यद्वक्ताओं और भजन संहिता में लिखी गई थीं। अब कुछ आलोचकों ने कहा था कि क्योंकि यीशु प्राचीन लेखों को जानता था, उसने केवल अपने जीवन को उन्हें पूर्ण करने के लिए योजनाबद्ध रीति से कार्यान्वित किया। कोई व्यक्ति केवल एक या दो घटनाओं में ही ऐसी योजनाएँ  कार्यान्वित कर सकता है, और हो सकता है अपने मृत्यु की योजना भी बना ले, किंतु स्मरण रखें कि यीशु ने एक या दो को नहीं सैकड़ों भविष्यवाणियों को पूर्ण किया है (पाठ ४ की समीक्षा करें)। और इससे भी अधिक यह बात है कि, एक मात्र नश्वर प्राणी अपने स्वयं के पुनरुत्थान को योजनाबद्ध कार्यान्वित नहीं कर सकता है! जब यीशु ने "उनकी बुद्धि को खोला ताकि वे समझ सकें," इसमें कोई संदेह नहीं था कि वह केंद्रीय चरित्र था!

साथ ही, इस बात पर भी ध्यान दें कि इसमें से कोई भी बात यीशु के साथ बस यूं ही हो नहीं गई। चाहे उसकी मृत्यु कितनी भी भयानक रही हो परंतु यीशु कभी भी एक पीड़ित व्यक्ति नहीं था। न तो इब्रानी धार्मिक अगुवों को और न ही विदेशी राज्यपाल को यीशु की मृत्यु के लिए दोषी ठहराया जा सकता था। यीशु ने स्वयं इस बात पर बल देते हुए कहा है कि कोई भी उसके प्राण छीन नहीं सकता है बल्कि, "मैं उसे आप ही देता हूँ। मुझे उसके देने का भी अधिकार है, और उसे फिर ले लेने का भी अधिकार है...” (यूहन्ना १०:१८ )। यदि किसी को यीशु की मृत्यु के लिए दोषी ठहराया जा सकता है, तो वह आप हैं, और मैं हूँ और हर वह व्यक्ति जो पाप के साथ पैदा हुआ है और जिसे एक उद्धारकर्ता की आवश्यकता है!

पूछें और मनन करें 

  • क्या आप बाइबल और यीशु की कहानी को "आशा" के अध्ययन के परिणामस्वरूप इस नए प्रकाश में देखते हैं? यदि हाँ, तो क्या आप समझा सकते हैं कि इसने आपके दृष्टिकोण को कैसे प्रभावित किया?
  • सोचें, यदि इस संसार में आप पाप से संक्रमित एकमात्र व्यक्ति होते, तो आपका पाप यीशु को क्रूस पर चढ़ाने के लिए पर्याप्त होता, और वह क्रूस पर चढ़ने के लिए राज़ी होता। क्या आप स्वयं को परमेश्वर की भव्य कहानी के एक पात्र के रूप में देखते हैं? क्यों या क्यों नहीं?

निर्णय लें और करें 

हम अपनी कहानी के अंत की ओर बढ़ रहे हैं। आप संभवत इस पाठ्य सामग्री को दोबारा नहीं पढ़ेंगे (कम से कम इस अध्ययन के संदर्भ में तो नहीं)। यदि कोई ऐसा विषय है जिस पर और अधिक विचार करने के लिए आप दोबारा पढ़ना चाहते हैं, तो ऐसा करने के लिए शीघ्र ही अलग से समय निर्धारित करें। इस अध्ययन के दौरान आपने जो कुछ सीखा है, उसके परिणामस्वरूप यदि परमेश्वर के साथ आपका कोई मुद्दा अधूरा रह गया है, तो तो उसे टालें नहीं। उसे उसके साथ मिलकर उसे समझाएँ, और इसके लिए आपको जिस भी मार्गदर्शन की आवश्यकता पड़े, उसे लें।

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