अब तक की महानतम कहानी
वह शानदार कहानी जो हर दूसरी कहानी की व्याख्या करती है।
ध्यान से देखें और विचार करें
हम सभी दिल से एक कहानीकार हैं। आपने अक्सर देखा होगा कि जब एक कहानी बताई जाती है तो उसके जवाब में दूसरा व्यक्ति भी उससे जुड़ी अपनी एक कहानी बताता है, और फिर एक और व्यक्ति अपनी कहानी बताता है और यह सिलसिला ऐसे ही चलता जाता है। हम सब लोग एक अच्छी कहानी की ओर आकर्षित होते हैं, और उससे भी बढ़कर हम, अपनी कहानी से बड़ी किसी कहानी में, स्वयं को जोड़ने और उसमें शामिल होने की इच्छा रखते हैं।
सच तो यह है कि कुछ समाजशास्त्री कहते हैं कि मानव जाति की आवश्यक खोज को एक "मेटानैरेटिव" या "मेटानार्रा" को ढूँढने की कोशिश के रूप में समझा जा सकता है”|1 इस शब्द से तात्पर्य है एक ऐसी भव्य कथा या आदर्श या विचारधारा जिसमें अन्य सभी कहानियाँ अपना अर्थ ढूँढ लेती हैं। संस्कृति या पद या स्थान या व्यवसाय के परे, मनुष्य स्वभाविक रूप से किसी ऐसी कहानी की खोज में रहता है जिसमें सारी अन्य कहानियाँ अपना अर्थ ढूँढ लें। एक ऐसी कहानी जिसमें हम स्वयं अपना अर्थ ढूँढ लें।
हर समय में, लोगों ने संस्कृति या धर्म के माध्यम से उन्हें प्राप्त हुई कहानियों में से अर्थ और उद्देश्य निकाला है। किंतु उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में आधुनिकता2 नामक एक विश्वदर्शन उभर कर आया जिसमें दावा किया गया था कि उस प्रकार की पारंपरिक "मेटानार्रा" अर्थात् भव्य कथाएँ अब हमारी आधुनिक दुनिया के लिए उपयुक्त नहीं है। आधुनिकतावाद ने "पुरानी" कहानियों और धार्मिक मूल्यों को तर्क या विज्ञान के निष्कर्षों के साथ बदलने की माँग की। आधुनिकतावादियों ने कहा कि ये हमारे लिए हमारे जीवन के अर्थ और उद्देश्य को परिभाषित करेंगे, जिससे एक नए "मेटानार्रा" या भव्य कथा की रचना होगी।
लेकिन आधुनिकता, विज्ञान या तर्क के आधार पर एक महान कहानी देने में विफल रही, और अब हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जिसे अक्सर "उत्तर-आधुनिक" कहा जाता है,”3 एक ऐसी दुनिया जो किसी भी महान कहानी के अस्तित्व को नकारती है!
फिर भी, हमारी उत्तर-आधुनिक दुनिया में भी, लोग उन कहानियों की ओर आकर्षित होते हैं जो जीवन को अर्थ प्रदान करती हैं। इस उत्तर-आधुनिक झूठ पर विश्वास कर कि कोई महानतम कहानी है ही नहीं, कई लोग कमतर कहानियों पर समझौता कर लेते हैं। इन व्यक्तिगत कहानियों के शीर्षक इस प्रकार होते हैं, जैसे "द वर्ल्ड अकॉर्डिंग टू मी," (मेरे नज़रिये से दुनिया) या "व्हाट आई नीड टू लिव हैप्पीली एवर आफ्टर" (सदा सर्वदा के लिए आनंदित रहने के लिए मुझे क्या चाहिए)। ये कहानियाँ एक व्यक्ति के परिवार या जीविका और जीवन के इन पहलुओं को कैसे जीना चाहिए, पर केन्द्रित होती हैं। हमारे इस संसार में जितने तरह के लोग हैं उतनी ही तरह-तरह की अनेक छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। और इस अंतहीन विभाजन की ही देन वह है जिसे हम "सापेक्षवाद" कहते हैं,”4 अर्थात् यह विचार कि जो कुछ भी आपके लिए सत्य है वही सत्य है।
कई लोग बाइबल को ६६ अलग-अलग पुस्तकों के रूप में देखते हैं जिसमें विवेकपूर्ण लेखन और अच्छी कहानियाँ हैं (अधिक-से-अधिक हुआ तो एक दूसरे से शिथिल रूप से जुड़ी होगीं) जो परमेश्वर के बारे में और मनुष्य के मामलों में परमेश्वर की भागीदारी के बारे में कुछ बता सकती हैं या नहीं भी बता सकती हैं। लेकिन बाइबल इन सबसे कहीं बढ़कर है। वास्तव में यह वह महानतम कहानी है जिसके माध्यम से हर दूसरी कहानी की व्याख्या होती है। यह केवल वह कहानी नहीं है जिसमें मानव जाति अपने अर्थ और उद्देश्य को पाती है बल्कि यह वह कहानी है जिसमें आप और मैं हमारे अर्थ और उद्देश्य को पा सकते हैं।
पूछें और मनन करें
अपनी कहानी के बारे में सोचें- वह कहानी जो आप अपने लिए कल्पना करते हैं।
- इसका मुख्य चरित्र कौन है? कहानी का क्या मतलब है? क्या उसका अंत सुखद है? अपनी कहानी के परिणाम पर आपका कितना नियंत्रण है?
- चाहे हमें इस बात का बोध हो या नहीं हम सब के भीतर एक कहानी छुपी है। इसीलिए हम हर दिन उठते हैं और अपने कार्य करते हैं। शायद आप एक ऐसी लंबी कहानी की कल्पना कर रहे हैं जो आपके पूरे जीवन भर चले। आप चाहें तो इस एक दिन के लिए एक कहानी की कल्पना कर सकते हैं।
- क्या आपकी कहानी किसी बड़ी कहानी का हिस्सा है? यदि ऐसा है तो, आप उस बड़ी कहानी का वर्णन कैसे करेंगे?
निर्णय लें और करें
मान लीजिए एक कला संग्रहालय में दो लोग एक ही मूर्ति को देख रहे हैं, और वे दोनों अलग-अलग कोणों से मूर्ति का अध्ययन कर रहे हैं। यदि उन्हें इस बात का वर्णन करना हो कि उन्होने क्या देखा, तो उन दोनों का वर्णन अलग-अलग होगा, भले ही वे दोनों एक ही मूर्ति को देख रहे थे।
पिछले कुछ दिनों में, हमने बाइबल को कई अलग-अलग पहलुओं से देखा है। हमने बाइबल को उसकी संरचना और सब लोगों पर उसकी प्रभाव के संदर्भ में किसी भी अन्य पुस्तक से भिन्न शास्त्र के रूप में देखा है। हमने इसे एक ऐसे शास्त्र के रूप में देखा है जिस पर हम अपने जीवन में संदर्भ बिंदु के रूप में निःसंदेह भरोसा कर सकते हैं। और हमने बाइबल को महानतम कहानी माना है जिसमें आप और मैं हमारे अर्थ और उद्देश्य को पा सकते हैं।
बाइबल को देखने का एक कोण और भी है।
बाइबल की पुस्तक २ तीमुथियुस कहती है कि सम्पूर्ण बाइबल “परमेश्वर की प्रेरणा” से रची गई है (२ तीमुथियुस ३:१६ )| "प्रेरणा" शब्द का अनुवाद आरंभिक हस्तलिपियों में पाए गए ग्रीक शब्द "थेयोपनिस्टस " 5 से किया गया है। इस शब्द का शाब्दिक अर्थ है "परमेश्वर का श्वास"। इस पद के अनुसार, बाइबल परमेश्वर के बारे में मात्र एक पुस्तक ही नहीं है; यह परमेश्वर का वचन है। यह दावा करती है कि परमेश्वर स्वयं आपसे और मुझसे बातें कर रहा है।
इस दावे और बाइबल के बारे में अब तक हमने जो कुछ भी में समझा है, उसकी रोशनी में, अपने आप से ये प्रश्न पूछिए, "क्या होगा यदि परमेश्वर आज रात प्रकट हो और मुझसे बातें करें? वह ऐसा करने के लिए समय भी क्यों निकालेगा? मेरी प्रतिक्रिया क्या होगी? मैं क्या करने या क्या बनने के लिए प्रेरणा पाऊँगा?
बाइबल के माध्यम से परमेश्वर आपसे बात कर रहा है। आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी?
For Further Study
- Art Lindsley, C. S. Lewis on Postmodernism. This article originally appeared in the Spring 2002 issue of Knowing & Doing, © The C. S. Lewis Institute, 2002. (http://www.cslewisinstitute.org/webfm_send/55). Retrieved on November 14, 2006.
- Stan Wallace, The Real Issue: Discerning and Defining the Essentials of Postmodernism. (http://www.hongmark.com/resource/SummitResearchSupplementals/Postmodernism.pdf). Retrieved August 27, 2015. This article addresses the essential properties of the postmodern way of thinking.
- Bob Hostetler, Who Changed the Cultural Channel? (© The Salvation Army, The War Cry, 2015). (http://www.thewarcry.org/2014/08/25/who-changed-the-cultural-channel/). Retrieved August 27, 2015.
- Donald Macleod, The Inspiration of Scripture. From the book, A Faith to Live By. (http://www.christianfocus.com/item/show/1350/-)
Footnotes
1Wikipedia®, Metanarrative. (http://en.wikipedia.org/wiki/Metanarrative). Retrieved November 14, 2006.
2Todd Kappelman, The Breakdown of Religious Knowledge. (© Probe Ministries, 1996–2006). (http://www.leaderu.com/orgs/probe/docs/breakdwn.html). Retrieved November 14, 2006. “What constitutes truth? The way we answer that question has greatly changed since the Middle Ages. This essay provides an overview of three areas in philosophical thought, with their impact on Western culture: premodernism (the belief that truth corresponds to reality), modernism (the belief that human reason is the only way to obtain truth), and postmodernism (the belief that there is no such thing as objective truth).”
3Wikipedia®, Postmodernism. (http://en.wikipedia.org/wiki/Postmodernism). Retrieved November 14, 2006.
4Wikipedia®, Relativism. (http://en.wikipedia.org/wiki/Relativism). Retrieved November 14, 2006.
5Strong’s Greek Dictionary, Theopneustos. (http://strongsnumbers.com/greek/2315.htm). Retrieved November 14, 2006.