इस महान कहानी में आपकी भूमिका
महान आज्ञा को पूरा करने के लिए एक चुनौती।
प्रस्तावना
"इसलिये तुम जाओ, सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ ; और उन्हें पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो..."
– मत्ती २८:१९
"और उसने उनसे कहा, “तुम सारे जगत में जाकर सारी सृष्टि के लोगों को सुसमाचार प्रचार करो।"
– मरकुस १६:१५
"और यरूशलेम से लेकर सब जातियों में मन फिराव का और पापों की क्षमा का प्रचार, उसी के नाम से किया जाएगा।"
– लूका २४:४७
और राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।"
– मत्ती २४:१४
"पर अवश्य है कि पहले सुसमाचार सब जातियों में प्रचार किया जाए।"
– मरकुस १३:१०
"प्रभु अपनी प्रतिज्ञा के विषय में देर नहीं करता, जैसी देर कुछ लोग समझते हैं; पर तुम्हारे विषय में धीरज धरता है, और नहीं चाहता कि कोई नष्ट हो, वरन् यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।"
– २ पतरस ३:९
ध्यान से देखें और विचार करें
पिछले पाठ में हमने परमेश्वर की भव्य कहानी पर विचार किया था, जैसा कि मनुष्य पर प्रकट किया गया है: "सब बातों का परम लक्ष्य यह है कि प्रत्येक जाति, भाषा, लोग और देश से छुटकारा पाए हुए असंख्य लोगों के द्वारा परमेश्वर की आराधना अति स्नेह सहित हो सकें।" 1 (प्रकाशितवाक्य 5:9, प्रकाशितवाक्य 7:9). पद 1 कुरिन्थियों 2:9, में हमने देखा था कि परमेश्वर ने उनके लिए जो उससे प्रेम करते हैं कुछ ऐसा अद्भुत बनाया है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। हमने यह भी देखा था कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम करते हैं, उन्हें एक नए आकाश (स्वर्ग) और नई पृथ्वी पर रहने के लिए तैयार किया जाएगा, जहाँ वे लोग उसके साथ राज्य करेंगे और उसे महिमा देंगे, युगानुयुग तक! (प्रकाशितवाक्य 22:5, भजन संहिता 86:12)|
परंतु यह सब बातें कब घटित होंगी? पाठ ६०, में से स्मरण करें, हमने पढ़ा था कि यीशु के स्वर्गारोहण से ठीक पहले उसने अपने अनुयायियों को कुछ निर्देश दिए थे। इन निर्देशों को आमतौर पर 'महान आज्ञा' के रूप में जाना जाता है और यह मत्ती, मरकुस और लूका की इंजील में दर्ज़ हैं। (इस पाठ के आरंभ में इन पदों को सूचीबद्ध किया गया है)। ध्यान दें कि मत्ती 24:14 कहता है कि "अंत" तब तक नहीं आएगा जब तक "सब जातियों पर गवाही होने के लिए, सारे जगत में सुसमाचार का प्रचार न हो जाए।"
पाठ २५ से स्मरण करें कि बाइबल में ‘जाति’ शब्द का तात्पर्य एक भौगोलिक देश से नहीं है, बल्कि एक ऐसा समूह है जो भाषा, संस्कृति, जनजातीय संबद्धता आदि के आधार पर अन्य लोगों के समूह से भिन्न होता है। बाबेल की मीनार पर परमेश्वर के न्याय के तत्पश्चात, ७० जातियों का जन्म हुआ। संसार में आज हजारों जातियाँ हैं। उनमें से बहुतों तक तो अभी तक सुसमाचार पहुँचाया नहीं जा सका है। और जब तक उन तक सुसमाचार पहुँच नहीं जाता, अंत (या आरंभ, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप इसे किस रूप में देखते हैं) नहीं आएगा।
अब उपर्युक्त सूची में से, २ पतरस ३:९ पर विचार करें। इस पद में "प्रतिज्ञा" वह प्रतिज्ञा है जो यीशु ने अपने आगमन के विषय में की थी, जब वह अपने अनुयायियों के लिए बनाई गई उसकी सब योजनाओं को पूर्ण करेगा। इस पद में हम देखते हैं कि यीशु अपनी प्रतिज्ञा के विषय में देर नहीं करता है, बल्कि वह नहीं चाहता है कि एक भी जन नाश हो। चाहे यह संसार कितना ही बुरा क्यों न हो, चाहे इसमें कितने ही कष्ट क्यों न हो, यीशु लोगों से इतना अधिक प्रेम करता है कि वह अंत को लाने में देर करने के लिए तैयार है ताकि कोई जन उसके पास विश्वास में आ सके, क्योंकि जब उसका आगमन होगा, तब तक बहुत देर हो जाएगी।
मत्ती 24:14 और 2 पतरस 3:9'महान आज्ञा' की चौड़ाई और गहराई को परिभाषित करते हुए हमें दिखाते हैं कि यीशु को जातियों और व्यक्तियों के लिए एक जुनून है। तो उसका आगमन कब होगा? यीशु कहता है, "उस दिन या उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत और न पुत्र; परन्तु केवल पिता।" (मरकुस १३:३२)। वह दिन हम से छुपाया गया है किंतु हम जानते हैं कि वह दिन तब तक नहीं आएगा जब तक: १) सब जातियों पर सुसमाचार की गवाही न हो जाए और २) जब तक यीशु पर भरोसा करने वाला वह अंतिम व्यक्ति उस पर भरोसा न कर ले।
पिछले दशक में, कलीसिया ने संसार की दुर्गम जातियों तक सुसमाचार को पहुँचाने में अभूतपूर्व प्रगति की है। परमेश्वर उस दिन की इच्छा करता है जिस दिन वह अपनी आशीषें उन लोगों पर उँड़ेलेगा जो लोग उसकी इच्छा करते हैं (यशायाह ३०:१८)। परन्तु वह दिन तब तक नहीं आएगा जब तक कि 'महान आज्ञा' पूरी न हो जाए।
पूछें और मनन करें
- क्या आप उस दिन की इच्छा करते हैं जब यीशु, जिन्हें वह प्रेम करता है उनके लिए अपनी प्रतिज्ञा को पूर्ण करने के लिए वापस लौटेगा? क्या आप यीशु की इच्छा करते हैं?
- 'महान आज्ञा' को पूरा करने के लिए आप क्या कर रहे हैं?
निर्णय लें और करें
अपने अध्ययन को समाप्त करते हुए, आइए, 'महान आज्ञा' के विषय पर जॉन पाइपर के विचारों या उनके शब्द में कहें तो विशेष कार्यों को, एक बार फिर से देखते हैं। पाइपर के अनुसार, विशेष कार्य कलीसिया का परम लक्ष्य नहीं है। परमेश्वर को महिमा देना कलीसिया का परम लक्ष्य है - क्योंकि यह परमेश्वर का परम लक्ष्य है। "सब बातों का परम लक्ष्य यह है कि प्रत्येक जाति, भाषा, लोग और देश से छुटकारा पाए हुए असंख्य लोगों के द्वारा परमेश्वर की आराधना अति स्नेह सहित हो सकें।" विशेष कार्य तो है किंतु आराधना नदारद है। जब परमेश्वर का राज्य अपनी महिमा में आएगा तब विशेष कार्य बंद हो जाएगा। विशेष कार्य अंतिम है, किंतु आराधना परम है। यदि हम यह बात भूल जाते हैं और उनकी भूमिकाओं को उलट देते हैं तो दोनों का जुनून और शक्ति कम हो जाती है।” 2
इस प्रकार, आराधना विशेष कार्य के लिए प्रेरणा है, और जैसी आराधना परमेश्वर चाहता है वह तब तक पूर्ण नहीं होगी जब तक कि 'महान आज्ञा' पूर्ण न हो जाए। न केवल पासबानों या मिशनरियों जैसे 'पेशेवर' लोगों को, बल्कि यीशु के प्रत्येक अनुयायी को 'महान आज्ञा' को पूर्ण करने में सहायता करने के लिए बुलाहट दी गई है। हो सकता है आपको किसी दुर्गम जाति तक पहुँचने के लिए बुलाहट न मिली हो, किंतु आप उन लोगों के लिए प्रार्थना और सहायता कर सकते हैं जिन लोगों को वहाँ जाने की बुलाहट मिली है। निश्चित रूप से, आप यीशु के विषय में उन लोगों को प्रचार कर सकते हैं जो आपके प्रभाव क्षेत्र में हैं। हम नहीं जानते कि उसके पुनः आगमन से पहले किस जाति तक पहुँचा जाएगा। न ही हम यह जानते हैं कि वह अंतिम व्यक्ति कौन-सा होगा जिस तक हम पहुँचेंगे। वह व्यक्ति किसी दूर देश में या फिर आप के निकट आपके पड़ोस में भी हो सकता है।
पता करें कि आप अपने प्रभाव क्षेत्र में और संसार भर में 'महान आज्ञा' को पूर्ण करने के लिए किस प्रकार सहायता कर सकते हैं। परमेश्वर से विनती करें कि वह आप पर उन कार्यों को प्रकट करें जो जातियों तक सुसमाचार का प्रचार पहुँचा रहे हैं। अंत में अपने प्रभाव क्षेत्र के उन १० व्यक्तियों की सूची बनाएँ जिन्हें यीशु को जानने की आवश्यकता है। उस सूची के प्रत्येक व्यक्ति के उद्धार के लिए नियमित रूप से प्रार्थना करना आरंभ करें। इस बात के लिए प्रार्थना करें कि परमेश्वर आपके लिए उनमें से हर एक व्यक्ति के साथ यीशु में अपने विश्वास को साझा करने के लिए समय और स्थान तैयार करे।
जब आप परमेश्वर के साथ उस कार्य में सहभागी होंगे जो वह संसार में कर रहा है, तो उसके साथ अपने संबंध में आप और अधिक उन्नति करेंगे। यदि आप उसके सहभागी होना नहीं चुनेंगे, तब भी परमेश्वर किसी न किसी व्यक्ति को ऊपर उठाकर उसके द्वारा अपने कार्य को पूरा करेगा। जैसे कि हमने "आशा" के अपने अध्ययन में देखा, वह संप्रभु है और उसकी योजनाएँ कभी विफल नहीं होती हैं। परंतु जैसा कि हमने अपने अध्याय में यह भी देखा है कि जो व्यक्ति परमेश्वर को 'हाँ' कहने के लिए तत्पर रहता है, परमेश्वर उसे सच्ची आशीष देता है। स्मरण रखें, जब आप परमेश्वर के साथ चलते हैं, तब आप परमेश्वर में उन्नति करते हैं। परमेश्वर आपको आशीष दे ताकि आप उसके लिए और अपने आसपास की दुनिया के लिए एक आशीष बन सकें!
अधिक अध्ययन के लिए पढ़ें
- Joshua Project. (© Joshua Project, A Ministry of the U. S. Center for World Missions, 2006). (http://www.joshuaproject.net/). Retrieved December 11, 2006. The mission and passion of Joshua Project is to identify and highlight the people groups of the world that have the least exposure to the Gospel and the least Christian presence in their midst.
- The Traveling Team at http://www.thetravelingteam.org/. This website, although targeting college students, is a great place to check out the Biblical basis of missions, as well as to walk one through God’s heart for the world from Genesis to Revelation – a wealth of mission related resources. Retrieved December 11, 2006.
- Finish the Job (VHS). © Mars Hill Productions, 1998. “A missionary doctor’s passionate plea to trust God to do whatever it takes to complete the task of taking the gospel to every tongue, tribe and nation.”
- The Great Commission – The Great Adventure. (© AllAboutJesusChrist.org, 2002–2006). (http://www.allaboutjesuschrist.org/the-great-commission.htm). Retrieved December 11, 2006.
- John Piper, Tell How Much the Lord Has Done for You! (© Desiring God Ministries, 2006). (http://www.desiringgod.org/resource-library/sermons/tell-how-much-the-lord-has-done-for-you). Retrieved December 11, 2006.
Footnotes
1John Piper, There Is No Greater Satisfaction: A God–centered Motivation for World Missions. (http://www.desiringgod.org/resource-library/articles/there-is-no-greater-satisfaction). (© Mission Frontiers, January–February, 1998) Retrieved December 11, 2006.
2Ibid.