पाप को ढाँपने के लिए आवरण
बलिदानों ने पाप को ढाँप तो दिया किन्तु उसे दूर नहीं किया।
प्रस्तावना
"जो कुछ मैं तुझे दिखाता हूँ, अर्थात् निवास-स्थान और उसके सब सामान का नमूना, उसी के अनुसार तुम लोग उसे बनाना।"
– निर्गमन २५:९
"अर्थात् पापबलि का एक बछड़ा प्रायश्चित्त के लिये प्रतिदिन चढ़ाना। वेदी को भी प्रायश्चित्त करने के समय शुद्ध करना, और उसे पवित्र करने के लिये उसका अभिषेक करना।"
– निर्गमन २९:३६
"मैं इस्राएलियों से वहीं मिला करूँगा और वह तम्बू मेरे तेज से पवित्र किया जाएगा; और मैं मिलापवाले तम्बू और वेदी को पवित्र करूँगा, और हारून और उसके पुत्रों को भी पवित्र करूँगा कि वे मेरे लिये याजक का काम करें। और मैं इस्राएलियों के मध्य निवास करूँगा, और उनका परमेश्वर ठहरूँगा।"
– निर्गमन २९:४३-४५
"अब परमेश्वर जानता था कि उस पाप के कारण जिसने मानव जाति को संक्रमित किया था, लोग इस व्यवस्था का पालन नहीं कर पाएँगे। इसलिए परमेश्वर ने मूसा को एक पवित्र स्थान बनाने का निर्देश दिया जहाँ उसकी उपस्थिति वास करे और लोग अपने पापों के लिए बलिदान चढ़ाने हेतु पशुओं को ला सकें। पशु का लहू उनके पापों को ढाँप देगा ताकि परमेश्वर उनके पाप न देखे। हालाँकि इन बलियों ने पाप तो ढाँपा किन्तु यह पाप दूर न कर सकीं।"
– "आशा" अध्याय ७
ध्यान से देखें और विचार करें
जब परमेश्वर ने इब्री लोगों को व्यवस्था दी थी, वह जानता था कि उस पाप के कारण जो मानवजाति को संक्रमित कर चुका है (पाठ १८), वे लोग व्यवस्था का पालन नहीं कर पाएँगे। ऐसा प्रतीत हो सकता है कि परमेश्वर द्वारा इब्री लोगों को एक ऐसा मापदंड देना जिस पर वे लोग खरे नहीं उतर पाएँगे, एक कठोर बात है। परंतु आइए इस बात को थोड़ा गहराई से देखते हैं। मनुष्य की सबसे बड़ी आवश्यकता है कि वह परमेश्वर के साथ एक स्वस्थ संबंध में बना रहे। क्योंकि व्यवस्था परमेश्वर के चरित्र का प्रतिनिधित्व करती है, मनुष्य व्यवस्था को दरकिनार कर परमेश्वर के साथ एक सही संबंध में नहीं हो सकता है। व्यवस्था दर्शाती है कि परमेश्वर कौन है। जिस प्रकार परमेश्वर पवित्र, धर्मी और भला है... उसी प्रकार व्यवस्था भी है (रोमियों 7:16)| यदि मनुष्य को परमेश्वर के साथ एक सही संबंध में होना है तो यह आवश्यक है कि वह व्यवस्था के साथ भी एक सही संबंध स्थापित करें।
अनुग्रह, दया और बुद्धि से परिपूर्ण परमेश्वर ने इब्री लोगों को उसके साथ एक सही संबंध में बने रहने के लिए एक मार्ग प्रदान किया था, फिर भी वे लोग व्यवस्था को तोड़ देते थे। जैसे कि "आशा" में कहा गया है, इसलिए परमेश्वर ने मूसा को एक पवित्र स्थान बनाने का निर्देश दिया जहाँ उसकी उपस्थिति वास करे और लोग अपने पापों के लिए बलिदान चढ़ाने हेतु पशुओं को ला सकें। पशु का लहू उनके पापों को ढाँप देगा ताकि परमेश्वर उनके पाप न देखे। निर्गमन २५-२७ में बलिदान चढ़ाने हेतु इस पवित्र स्थान, जिसे तंबू कहा जाता था, के विषय में दिए गए परमेश्वर के निर्देश का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है निर्गमन २९-३०|
निर्गमन 29:36 में हम पढ़ते हैं कि यह बलिदान की भेंट "प्रायश्चित" के लिए थी।1 Tशब्द "प्रायश्चित" इब्रानी शब्द "कफ़र" 2 से आया है जिसका शाब्दिक अर्थ है "ढाँपना।" (यह वही शब्द था जिसका उपयोग तब किया गया था जब परमेश्वर ने नूह से जहाज पर भीतर-बाहर से राल लगाने के लिए कहा था।) जब पापबलि की भेंटों को प्रायश्चित के लिए चढ़ाया जाता था, तब एक तरह से वे लोग भी पाप को "ढाँप" रहे होते थे। अब यह सोचना तो मूर्खता होगी कि परमेश्वर, वह एकमात्र जन, जो सब बातों को देखता है और सब बातों को जानता है, वह पाप को नहीं देख सकता, मानों वह पापबलि के परे उस पाप को नहीं देख पाएगा। यह कहना अधिक उचित रहेगा कि परमेश्वर ने पाप को न देखने और उस पर अपना न्याय न डालने का चयन करके पापबलि को आदर दिया है...कम से कम कुछ समय के लिए।
यदि हम सीधे नए नियम में जाएँ (इब्रानियों 10:4), तो हम देखेंगे कि जबकि इन पापबलि की भेंटों ने पाप को ढाँप तो दिया किन्तु उसे दूर नहीं किया। इससे बढ़कर, हम यह भी देखते हैं कि एक समय आएगा जब सारी छिपी बातें प्रगट की जाएँगी (1 कुरिन्थियों 4:5 और 1 कुरिन्थियों 3:13)। दूसरे शब्दों में, जो बातें ढँकी हुई हैं, वे खुल जाएँगी, और प्रत्येक व्यक्ति के कर्म प्रगट हों जाएँगे, चाहे अच्छे हों या बुरे (2 कुरिन्थियों 5:10, प्रकाशितवाक्य 20:12).
इब्री लोगों द्वारा चढ़ाई गई प्रायश्चित्त के लिये पापबलि की भेंटें एक वचन-पत्र के समान है। जब कोई व्यक्ति बहुत अधिक मात्रा धन उधार लेता है, तब उधारदाता को उससे एक पर समझौते पर (वचन-पत्र)3 पर हस्ताक्षर करवाने की आवश्यकता पड़ती है ताकि वह (उधारदाता) एक निश्चित तिथि तक निश्चित धनराशि का भुगतान कर दे। वह वचन-पात्र उधार तो नहीं चुकाता है किंतु वह उधारदाता को तब तक पहले जैसा एक सामान्य जीवन जीने की अनुमति देता है जब तक भुगतान करने की निर्धारित तिथि न आ जाए और पूर्ण भुगतान न कर दिया जाए। उसी प्रकार, इन पापबलि की भेंटों ने इब्री लोगों को परमेश्वर के साथ एक सही संबंध में जीवन व्यतीत करते रहने की अनुमति दी थी। उन्होंने पाप को तो दूर नहीं किया किन्तु उन्होंने पाप की समस्या का एक अस्थायी समाधान पेश किया, जब तक की प्रतिज्ञा किया हुआ छुड़ानेवाला पाप को सदा सर्वदा के लिए दूर नहीं कर देता (यूहन्ना 1:29). ये बलिदान की भेंटे उस समय की ओर इशारा करती हैं, जब एक सिद्ध बलिदान वह अंतिम भुकतान बन जाएगा जो पाप के ऋण को पूरी तरह से समाप्त कर देगा|
पूछें और मनन करें
- बाइबल कहती है कि व्यवस्था भली है (रोमियों 7:12, 1 तीमुथियुस 1:8). क्या परमेश्वर की व्यवस्था (या साधारणतः नियम) का विचार आपके भीतर एक अच्छी अनुभूति जागृत करता है या एक बुरी अनुभूति? क्यों?
- अधिकांश लोगों के लिए, पशुओं की बलि देना एक आपत्तिजनक विचार है। परंतु यह समझने का प्रयास करें कि बीमारी जितनी बड़ी होती है, उसकी उपचार-पद्धति भी उतनी ही अधिक जटिल होती है। उदाहरण के लिए, एक कैंसर पीड़ित व्यक्ति को कीमोथेरेपी कराने की आवश्यकता पड़ सकती है; एक हृदय रोगी को बायपास सर्जरी कराने की आवश्यकता पड़ सकती है। कोई भी इस प्रकार के उपचारों को तब तक नहीं लेगा जब तक उस बीमारी के उपचार के लिए ऐसा करना आवश्यक न हो।
एक पापपूर्ण कार्य मात्र एक गलती नहीं है; वह परमेश्वर की व्यवस्था का उल्लंघन है, और इसी लिए स्वयं परमेश्वर का भी उल्लंघन है। पाप की वह शक्ति जो प्रत्येक व्यक्ति के भीतर कार्य करती है केवल एक बुरा रवैया नहीं है; वह अंधकार की एक शक्ति है जो तब तक मृत्यु लाती रहती है जब तक इससे निपटा न जाए। एक पशु की जान लेना किसी व्यक्ति को अतिशय प्रतीत हो सकता है, किंतु पाप की समस्या तो अतिशय से भी कहीं अधिक विकट है। पाप के प्रायश्चित के रूप में पशुबलि चढ़ाने के लिए इब्री लोगों को दिए गए परमेश्वर के निर्देशों के बारे में आपकी अनुभूति क्या है? वर्णन करें।
निर्णय लें और करें
निर्गमन २९-३० पढ़ें। ज़रा सोचिए, इब्री लोगों को पाप के प्रायश्चित के लिए बारबार बलिदान चढ़ाने पड़ते थे ताकि वे परमेश्वर के साथ एक सही संबंध में बने रह सकें। परंतु वे लोग जो 'छुड़ानेवाले' के कार्यों पर भरोसा करते हैं, उनके लिए पाप की समस्या का समाधान सदा सर्वदा के लिए हो गया है। यदि आपने 'छुड़ानेवाले' के ऊपर अभी तक भरोसा नहीं किया है तो तुरंत इस अभ्यास मार्गदर्शिका के अंत में दिए गए 'परमेश्वर को जानना' खंड में जाएँ। यदि आपने अपने पापों से निपटने के लिए पहले से ही 'छुड़ानेवाले' के ऊपर भरोसा कर लिया है, तो निर्गमन २९-३० पढ़ें, उसके लिए परमेश्वर का प्रार्थनापूर्वक धन्यवाद करें और उसे बताएँ कि उसने आपके लिए क्या किया है!
अधिक अध्ययन के लिए पढ़ें
- Lehman Strauss, The Atonement of Christ, by Lehman Strauss. (© bible.org, 2006). (http://www.bible.org/page.php?page_id=658). Retrieved October 18, 2006.
Footnotes
1Easton, Matthew George, Atonement. (Easton’s Bible Dictionary Online, 1897; accessed on the Christian Classics Ethereal Library website). (http://www.ccel.org/ccel/easton/ebd2.html?term=atonement). Retrieved October 18, 2006.
2Atonement (kaphar). (Hebrew Lexicon – Word Studies, Ancient Hebrew Research Center, 2006). (http://www.ancient-hebrew.org/27_atonement.html). Retrieved October 18, 2006.
3Promissory Note, defined by Wikipedia, 2006. (http://en.wikipedia.org/wiki/Promissory_note). Retrieved October 18, 2006.