यीशु का अनुसरण करने के लिए बुलाहट
परमेश्वर योग्यता से अधिक उपलब्धता को महत्व देता है।
प्रस्तावना
"गलील की झील के किनारे फिरते हुए उस ने दो भाइयों अर्थात् शमौन को जो पतरस कहलाता है, और उसके भाई अन्द्रियास को झील में जाल डालते देखा; क्योंकि वे मछवे थे। यीशु ने उन से कहा, “मेरे पीछे चले आओ, तो मैं तुम को मनुष्यों के पकड़नेवाले बनाऊँगा।“ वे तुरन्त जालों को छोड़कर उसके पीछे हो लिए। वहाँ से आगे बढ़कर, यीशु ने और दो भाइयों अर्थात् जब्दी के पुत्र याकूब और उसके भाई यूहन्ना को देखा। वे अपने पिता जब्दी के साथ नाव पर अपने जालों को सुधार रहे थे। उसने उन्हें भी बुलाया। वे तुरन्त नाव और अपने पिता को छोड़कर उसके पीछे हो लिए।"
– मत्ती: ४:१८-२२
"फिर उसने अपने बारह चेलों को पास बुलाकर, उन्हें अशुद्ध आत्माओं पर अधिकार दिया कि उन्हें निकालें और सब प्रकार की बीमारियों और सब प्रकार की दुर्बलताओं को दूर करें। इन बारह प्रेरितों के नाम ये हैं : पहला शमौन, जो पतरस कहलाता है, और उसका भाई अन्द्रियास; जब्दी का पुत्र याकूब, और उसका भाई यूहन्ना; फिलिप्पुस, और बरतुल्मै, थोमा, और महसूल लेनेवाला मत्ती, हलफई का पुत्र याकूब, और तद्दै, शमौन कनानी, और यहूदा इस्करियोती जिसने उसे पकड़वा भी दिया।"
– मत्ती १०:१-४
"शैतान का सामना करने के बाद यीशु पवित्र आत्मा के सामर्थ्य में वीराने से लौट आया। जल्द ही लोग यीशु का अनुकरण करने लगे। अधिकतर अनुयायी आम, साधारण लोग थे। लेकिन उन्होंने यीशु में कुछ बहुत ही असाधारण और अद्भुत देखा था। कुछ लोग अपनी रोज़ी-रोटी छोड़कर यीशु के पीछे हो लिए। इनमें से कुछ तो मछुवे थे। यीशु ने उनसे कहा, “मेरे पीछे हो लो तो मैं तुम्हें मनुष्यों का मछुआ बनाऊँगा।” जितनों ने उसका अनुकरण किया उसमें से उसने बारह को अपने निकट रहने के लिए चुना। वे यीशु के शिष्य कहलाए और लगभग तीन वर्ष तक वे उसके साथ चलते फिरते रहे और उससे सीखते रहे। वे संसार को यीशु के दृष्टि से देखने लगे। यीशु के अनुयायियों के रूप में वे उस बात के लिए तैयार किए जा रहे थे जो उनकी सोच से परे थी।"
– "आशा" अध्याय ९
ध्यान से देखें और विचार करें
शैतान की परीक्षाओं को परास्त कर देने के बाद यीशु पवित्र आत्मा के सामर्थ्य में वीराने से लौट आया। वह धरती पर अपनी सेवकाई के लिए तैयार था। शीघ्र ही लोग उसका अनुकरण करने लगे। यीशु ने उसके अनुयायियों में से कुछ लोगों को एक छोटे समूह के रूप में चुन लिया जो उसके चेलों (प्रेरितों) के रूप में पहचाने जाने लगे।1 यीशु इन्हीं चेलों के साथ रहता था। दिन-प्रतिदिन वह उन्हें वचन और दृष्टांत के माध्यम से शिक्षा देता था। उसने अपना जीवन उनके जीवनों को तैयार करने के लिए खर्च कर दिया। उसने उनकी आत्मा को स्वरूप प्रदान किया। और कुछ पुरुषों के इसी निकटतम आंतरिक समूह के माध्यम से, परमेश्वर ने एक कार्य और एक आंदोलन (अर्थात् कलीसिया) का आरंभ किया जो कि पूरे इतिहास में सचमुच बेजोड़ है।
यदि आप संसार में परिवर्तन लाने के लिए इसी प्रकार का कोई आंदोलन आरंभ करने के लिए लोगों को एक समूह में एकत्र करने जा रहे हैं तो हो सकता है आप कुछ असाधारण प्रतिभाशाली और निपुण लोगों की खोज करें। पर यहाँ भी, हम एक बार फिर देखते हैं कि परमेश्वर अपने कार्य उस रीति से नहीं करता जिस रीति से हम करते हैं। यीशु ने जिन पुरुषों को आतंरिक समूह में रहने के लिए बुलाहट दी थी, वे बहुत अधिक शिक्षित या प्रभावशाली नहीं थे। हर दृष्टि से वे आम साधारण पुरुष थे। इनमें से कई मछुआरे थे। एक चुंगी लेने वाला था। और एक आंदोलनकारी था। मगर यीशु ने उन में से प्रत्येक जन के भीतर क्षमता देखी, और अंततः परमेश्वर ने उनका उपयोग उन्हें कुछ बहुत ही उल्लेखनीय बातों को जन्म देने के लिए किया, कुछ ऐसा जो आज भी जीवित है और अनंतकाल तक जीवित रहेगा।
पूछें और मनन करें
- जब आप यीशु के चेलों के संदर्भ में विचार करते हैं तो आप उन्हें साधारण पुरुष मानते हैं या महान पुरुष? वर्णन कीजिए।
- प्रेरितों की प्रसिद्ध उत्कृष्ट चित्रकलाएँ उन्हें एक सुपर ह्यूमन (अद्भुत शक्तियों वाला मनुष्य)2के रूप में चित्रित करती हैं। आपको क्या लगता है, ऐसा क्यों है?
- जैसे कि चेलों के साथ हुआ था, वैसे ही परमेश्वर साधारण लोगों को असाधारण कार्य करने के लिए उपयोग करता है। क्या आपको लगता है कि परमेश्वर आपको कोई असाधारण कार्य करने के लिए उपयोग कर सकता है? क्यों और क्यों नहीं?
निर्णय ले और करें
यद्यपि वे मानवीय दृष्टि से असाधारण पुरुष नहीं रहे होंगे (शिक्षा, धन-सम्पत्ति, शक्ति, आदि के सन्दर्भ में), तथापि एक बात है जो चेलों को कई अन्य पुरुषों से भिन्न बनाती हैं और वह है- वे स्वयं को यीशु के लिए पूरी तरह से उपलब्ध कराने के लिए तैयार थे। उन्होंने अपना जीवन यीशु के साथ व्यतीत करने का निर्णय लिया।
यदि आप परमेश्वर के द्वारा उपयोग में लाया जाना चाहते हों, तो चेलों से सीखें। स्वयं को परमेश्वर के लिए उपलब्ध कराएँ। परमेश्वर योग्यता से अधिक उपलब्धता को महत्व देता है। यदि आप स्वयं को उसके लिए उपलब्ध कराते हैं तो वह आपका उपयोग करेगा। यह इतना सहज है।
अधिक अध्ययन के लिए पढ़ें
- John MacArthur, Twelve Ordinary Men. (W Publishing Group, A Division of Thomas Nelson, Inc., Nashville, Tennessee, 2002). To quote the back cover: “This book…brings you face to face with the disciples as you’ve never seen them before. You’ll walk in their shoes. You’ll understand their doubts and hopes. And you’ll hear the power of Jesus’ words in a whole new way. The message of Twelve Ordinary Men is clear. If Christ can accomplish his purposes through men like these, imagine what He has in store for you!” (http://www.amazon.com/Twelve–Ordinary–Men–John–MacArthur/dp/0849917735). Retrieved October 9, 2006.
- Who Were the Chosen Twelve? (© Bible Study Site. (http://www.biblestudy.org/question/12-apostles-twelve-disciples.html). Retrieved September 30, 2014. A brief overview of Jesus’ twelve disciples.
Footnote
1Bible Encyclopedia, Disciple. (ChristianAnswers.net, a Ministry of Films for Christ/Eden Communications, 2006).
(http://christiananswers.net/dictionary/disciple.html). Retrieved October 31, 2006.
2Compare these earlier paintings of Christ and His disciples that were downloaded from The Metropolitan Museum of Art’s website
(http://www.metmuseum.org/search-results?ft=christ+and+his+disciples&x=-1392&y=-58) with these more recent renderings: (http://christcenteredmall.com/stores/art/disciples_of_jesus.htm). (Christ–Centered Art, 2006. Web pages copyright © 1998–2006 by Christ–Centered Mall, Inc.). Retrieved October 31, 2006.